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60. पांचालों की परिषद्

उत्तरी पांचाल की राजधानी कंपिला में पांचालों की परिषद् जुड़ी थी। पांचाल संघ राज्य के सभी प्रतिनिधि उपस्थित थे। परिषद् में कुरु संघ राज्य के धनंजय, श्रुतसोम, अस्सक के राजा ब्रह्मदत्त, कलिंगराज सत्तभू, सौवीर के भरत, विदेह के रेणु तथा काशिराज धत्तरथ उपस्थित हुए थे। मद्रराज और कोसल के पांचों सामंत पुत्र भी आए थे। कपिलवस्तु, धन्यकंटक, जैतवन, नालंदा, तक्षशिला, कन्नौज, काशी, उज्जयिनी, मिथिला, मगध, राजगृह तथा कौशाम्बी के आर्यों और ब्राह्मणों के प्रतिनिधि भी सम्मिलित हुए थे। श्रोत्रिय भारद्वाज, कात्यायन, शौनक, बोधायन, गौतम, आपस्तंब, शाम्बव्य, जैमिनी, कणाद, औलूक, वसिष्ठ, सांख्यायन, हारीत, पाणिनि और वैशम्पायन पैल आदि धर्माचार्य भी उपस्थित थे। माण्डव्य उपरिचर भी आए थे।

अथर्व आंगिरस् ने सबसे प्रथम विवाह की नई मर्यादा उपस्थित की। उसने कहा-"परिषद् सुने, मैं अब से विवाह की नई मर्यादा स्थापित करता हूं। मैं अब तक प्रचलित वैदिक मर्यादा को बन्द करता हूं। अब से कोई कन्या अवस्था प्राप्त करने पर कुमारी न रहे, वह स्वयं पति को न चुने, वह एक पति के साथ अनुबंधित रहे, वह सपत्नियों से ईर्ष्या-रहित रहे।" केवल सन्तानोत्पत्ति के लिए ही युवती तरुणों को न वरें। वे उनके गृह-कृत्यों के लिए सुगृहिणी बनें। वर को कन्या, कन्या के गुरुजन दें और यह वृद्धावस्था तक उसी एक पति के साथ सुगृहिणी होकर रहे।"

वैशम्पायन पैल ने कहा-"किन्तु यह तो अवैदिक मर्यादा है। वैदिक मर्यादा में कन्या वर चुनने में स्वतन्त्र है, वह आजीवन उनके साथ रहने को बाध्य भी नहीं, वह आजन्म कुमारी भी रह सकती है।"

आंगरिस् ने कहा-"आज से अथर्वांगिरस् चतुर्थ वेद हो। गाय के चार पाद हैं, वेद भी तीन नहीं, चार हों। नई मर्यादा की आवश्यकता इसलिए है कि अब हमारा जनपद किसान और पशुपालक नहीं रह गया। हममें बड़े-बड़े राजन्य हैं; उनकी सेना, राजसम्पदा राज्याधिकार हैं। हममें राजपुरोहित ब्राह्मण हैं, जो समाज के नियन्ता हैं। हमारी सम्पत्ति, अधिकार और राजधर्म की मर्यादा नहीं है। आज से पुरुष पति है, स्त्री उसके अधीन है; वह दत्ता है। यज्ञ और धर्म-कृत्यों में उसका स्थान ब्राह्मण ग्रहण करें और दायभाग वह नहीं, उसका पुत्र ग्रहण करे।"

भारद्वाज ने कहा-"तो इसका यह अर्थ है कि अब स्त्री पति की जीवन-संगिनी नहीं है और वह धार्मिक कृत्यों में अभिन्न भी नहीं।"

आंगिरस् ने कहा-“वह जीवनसाथी रहे, अभिन्न भी रहे, पर अधिकार पति और पुत्र का हो।”

वैशम्पायन ने कहा-"क्या समाज में स्त्री-पुरुष समान नहीं?"