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मोक्ष को भी जानता है। उसी को दैवी तथा मानुषी भोगों से निर्वेद प्राप्त होता है और वह भोगों से विरक्त हो जाता है, बाहर-भीतर के उसके सब सम्बन्ध टूट जाते हैं और वह त्यागी परिव्राजक हो जाता है, वह सब पाप-कर्मों का त्याग कर धर्म का पालन करता है तथा अज्ञान से संचित कर्मरूपी पंक से अलिप्त हो जाता है। उसे सर्वविषयक केवली ज्ञान प्राप्त हो जाता है और वह केवल-ज्ञानी जिन लोक-अलोक के सच्चे स्वरूप को जान लेता है। तब वह अपने मन, वचन और कर्म के व्यापारों का निरोध करके शैल-जैसी निश्चल 'शैलेषी' दशा प्राप्त करता है। उस समय उसके सब कर्मों का क्षय हो जाता है। वह निरंजन होकर लोक की मूर्धा पर 'सिद्धि' गति को प्राप्त कर शाश्वत सिद्ध बन जाता है।"
महाश्रमण यह उपदेश देकर मौन हो गए। शालिभद्र ने सावरोध उठकर उनकी परिक्रमा की और अपने आवास को चल दिया।