मगध महामात्य ने बुद्ध का संकेत गांठ में बांध लिया। उन्होंने समझा कि वैशाली में फूट डालनी होगी। उनका एकमत भंग करना होगा। उन्होंने बंग, कलिंग, अवन्ती, कौशाम्बी, गंधार, भोज, भरत, अस्सक, आंध्र, शबर, माहिष्मती, भृगुकच्छ, शूर्पाटक, अश्मक, प्रतिष्ठान और विदिशा को गुप्तचर भेजे। उन देशों की वैशाली के प्रति उदासीनता उन्हें बड़ी महत्वपूर्ण लगी। उन्होंने अपने गुप्तचर वैशाली में भी फैला दिए। कोई रत्नपारखी होकर, कोई मूर्तिकार, कोई स्थापत्यकार होकर, वैशाली में जा बसे। अनेक नट, विट, वेश्याएं, टिनियां, विदूषक और सत्री वैशाली में फैला दिए गए। वे वज्जी-परिषद् के सभ्यों की पारस्परिक कलह-ईर्ष्या-द्वेष के कारणों का पता लगा-लगाकर संकेत-सूचनाएं भेजने लगे। विविध उपायों से वे उनमें कलह बढ़ाने लगे। वे सभ्य नागरिकों, शिल्पियों, दूतों एवं वणिकों के वेश में वैशाली-भर में फैल गए। बहुतों ने मद्य की हाट खोल ली और वे छोटी छोटी बातों पर लोगों में झगड़े कराने लगे। तीक्ष्णतर मैनफल के रस से भरे मद्य के घड़े नैषेचिक कहकर सम्भ्रान्त नागरिकों को देने लगे। अनेक बन्धविपोषक, प्लवक, नट, नर्तक और ओमिक लोग मुखियों को सुन्दर-सुन्दर कन्याओं पर आसक्त करके उन्मत्त कर-करके परस्पर लड़ाने लगे। वे एक सुन्दरी को किसी मुखिया पर लगाते। जब वह उस पर अनुरक्त हो जाता तो उसे दूसरे के पास भेज देते और पहले से कहते कि उसने उसे ज़बर्दस्ती रख छोड़ा है। इस प्रकार उनमें घातक युद्ध कराकर एक-दूसरे को मरवा डालने लगे। क्षण-क्षण पर अमात्य के पास सन्देश आने लगे। अब वे इस घात में लगे कि कब और कैसे वैशाली को आक्रान्त किया जाए।
गुप्तचरों ने उन्हें वैशालीगण के सभी भीतरी भेद बता दिए थे। अन्त में कूटनीति के आगार वर्षकार ने अपनी योजना स्थिर की। गुप्तचरों को बहुत-सी आवश्यक बातें समझाकर वैशाली भेज दिया और उन्होंने मागधों की राजपरिषद् बुलाई। सम्राट् के लिए वैशाली का आक्रमण अब साम्राज्यवर्द्धन का प्रश्न नहीं रह गया था। वे चाहे भी जिस मूल्य पर वैशाली को आक्रान्त कर, अम्बपाली को राजगृह ले आकर पट्टराजमहिषी बनाने पर तुले थे। यद्यपि अपनी यह अभिसंधि उन्होंने अपने बाल मित्र से भी गुप्त रखी थी, परन्तु अमात्य वर्षकार स्वयं ही उन्हें अम्बपाली के प्रति अभिमुख करते रहते थे।
वर्षकार की योजना थी कि प्रथम अवन्ती के चण्डप्रद्योत पर आक्रमण करके अरब समुद्र तक साम्राज्य का विस्तार किया जाय। रौरुक सौवीर पर उनकी गृधदृष्टि थी ही। जिस प्रकार चम्पा सुदूरपूर्व के व्यापार का मुख था, उसी प्रकार रौरुक सौवीर तब पच्छिम का व्यापार-मुख था। वहां यहूदी राजा सालोमन के जहाज़ स्वर्ण भरकर आते थे और बदले में वस्त्र, मसाले, हाथीदांत और अन्य पदार्थ ले जाते थे। उत्तर-पश्चिम में सागल का राजा मगध का मित्र था। वर्षकार ने बहुत-से बहुमूल्य उपानय भेजकर यहूदी राजा सालोमन को भी प्रसन्न कर लिया था। अब उनके साम्राज्य के विस्तार में अवन्ती का चण्डप्रद्योत ही, एक कांटा था। वे विराट चाहते थे, पहले उसी को समाप्त करके रौरुक सौवीर पर अधिकार करें तथा अरब समुद्र तक उनके साम्राज्य का विस्तार हो जाए। इधर कोसल पर विफल आक्रमण होने से गन्धार और चम्पा की व्यापार-श्रृंखला टूट रही थी और कोसल में परास्त होने का बुरा परिणाम वैशाली पर भी दीख पड़ रहा था, इसी से आर्य वर्षकार वैशाली से पहले अवन्ती पर अभियान चाहते थे। चाहे जिस कारण से भी हो, अमात्य और सम्राट् में