पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२१४

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गृहस्थ और वृद्ध हुए कोई परिव्राजक न हो।

तथागत का चेहरा कुछ पीत, थकित और चिन्तित था। उनका शरीर कृश और वाणी कोमल थी। उनके अंग यौवन से परिपूर्ण थे। सम्पूर्ण अंग में एक सौन्दर्य का प्रभाव प्रतिभासित होता था। वे बहुत भिनसार में ही आसन पर ध्यानमुद्रा में बैठ जाते थे और भक्तजनों को आनुपूर्वी कथावार्ता सुनाकर सदुपदेश देते रहते थे। उनकी दृष्टि तेजवती, कूटस्थ और स्थिर थी।

आर्य वर्षकार ने पास पहुंच परिक्रमा कर सामने आ अभिवादन किया, और एक ओर बैठ गए। महाश्रमण ने प्रसन्न दृष्टि से मगध-महामात्य को देखा। मगध-महामात्य की दृष्टि में गहरी चिन्ता की रेखाएं थीं। उन्होंने कहा—"भगवन्, साम्राज्य जनपद का सर्वश्रेष्ठ संगठन है न?"

बुद्ध ने हंसकर कहा—"यदि वह जनपद के प्रति उत्तरदायी हो।"

मगध महामात्य कुछ देर चुप रहे, फिर उन्होंने कहा—"भन्ते, क्या वज्जियों का गणतन्त्र सुसम्पन्न है?"

उस समय आयुष्मान् आनन्द भगवत् सेवा में उपस्थित थे। महाश्रमण कुछ देर चुप रहकर स्निग्ध वाणी से बोले—"आनन्द, वज्जीगण हर बार अपने संघ-सम्मेलन करते हैं न?"

"भन्ते, मैंने ऐसा ही सुना है।"

"और आनन्द, वे अपने गणसंघ में सब एकत्र होकर परामर्श करते हैं? एक साथ उठते, बैठते तथा मिलकर काम करते हैं न?"

"ऐसा ही है भन्ते!"

"वे नियमविरुद्ध कोई कार्य नहीं करते हैं न?"

"यही सत्य है भन्ते।"

"वे किसी मर्यादा का उल्लंघन तो नहीं करते?"

"नहीं भगवन्!"

"वे अपने पूर्वजों के कुल-धर्म का पालन करते हैं, पूज्य-पूजन करते हैं, ज्येष्ठों की आज्ञा मानते हैं न?"

"हां, भन्ते।"

"वे कुलपत्नियों तथा कुल-कुमारिकाओं पर बलात्कार तो नहीं करते? उनका अपहरण तो नहीं करते?"

"नहीं भन्ते!"

"वे अपने आभ्यन्तर एवं बाह्य चैत्यों की यथावत् अर्चना करते हैं? उनकी ठीक-ठाक रक्षा तो करते हैं? बलि-भोग देने में उदासीन तो नहीं हैं?"

"नहीं भन्ते, नहीं।"

"विद्वानों, अर्हतों का रक्षण-पालन यथावत करते हैं? वज्जियों के गणराज्य में साधुजन सुखी तो हैं?"

"हां भन्ते!"

"तो आनन्द, वज्जीजन जब तक ऐसा करते रहेंगे, तब तक उन्नत रहेंगे, उनकी अवनति नहीं हो सकती। उनके अवनत होने का भय नहीं है। वे समृद्ध होते जाएंगे।"