पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२१०

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और सो रहा। अंत को रात ही में वह राजगृह के शिबक द्वार पर पहुंचा। मनुष्यों ने द्वार खोल दिया। प्राचीर के बाहर निकलते ही वह अन्धकार और सुनसान देख भीत हो गया। उसके रोंगटे खड़े हो गए। इच्छा हुई कि पीछे लौट जाए। परन्तु उसके कानों में एक दिव्य ध्वनि सुनाई पड़ी। उसने मानो सुना—"सौ हाथी, सौ घोड़े, सौ खच्चरों के रथ, मणिकुण्डल पहने सौ हज़ार कन्याएं उसके एक पद के कथन के सोलहवें भाग के मूल्य के बराबर भी नहीं है। चला चल, गृहपति, चला चल, चलना ही श्रेयस्कर है। लौटना नहीं।

सेट्ठि के हृदय में प्रकाश उदय हुआ। वह चलता ही गया; गृध्रकूट पर जाकर उसने देखा—सम्यक्-सम्बुद्ध प्रत्यूषकाल में उठकर चंक्रमण में टहल रहे हैं। उन्होंने दूर से आते हुए अनाथपिण्डिक को देखा। देखकर चंक्रमण से उलटकर, बिछे आसन पर बैठकर आते हुए अनाथपिण्डिक से कहा—

"आ सुदत्त!"

अनाथपिण्डिक गृहपति तथागत को अपना नाम लेकर पुकारते सुन हृष्ट, उदग्र हो निकट जा चरणों में सिर से पकड़कर बोला—

"भन्ते, भगवान् को सुख से निद्रा तो आई?"

"निर्वाणप्राप्त सदा सुख से सोता है। वह शीतल तथा दोषरहित है, कामवासनाओं में लिप्त नहीं है, सारी आसक्तियों को खंडित कर हृदय से भय को दूर कर चित्त की शांति को प्राप्त कर, उपशांत हो वह सुख से सोता है।"

तब तथागत ने अनाथपिंडिक गृहपति को आनुपूर्वी कथा कही। इससे गृहपति अनाथपिंडिक को, उसी आसन पर, जो कुछ समुदाय धर्म है, वह निरोध-धर्म है, यह विमल-विरज चक्षु उत्पन्न हुआ। तब उसने शास्ता के शासन में स्वतन्त्र हो कहा—"भगवन्, मैं भगवान की शरण जाता हूं, आज से मुझे भगवान् सांजलि शरण में आया उपासक ग्रहण करें और भिक्षुसंघ सहित मेरा कल का निमन्त्रण स्वीकार करें!"

तथागत ने मौन-सहित स्वीकार किया। तब गृहपति अनाथपिंडिक आसन से उठ, भगवान् की प्रदक्षिणा और अभिवादन कर चला आया।

राजगृह के गृहपति ने सुना कि अनाथपिंडिक गृहपति ने कल भिक्षुसंघ को आमंत्रित किया है, तब उसने कहा—"गृहपति, तुम आगन्तुक हो और तुमने कल भिक्षुसंघ को आमंत्रित किया है, इसलिए मैं खर्च देता हूं , उसी से संघ के भोजन की व्यवस्था करो।"

अनाथपिंडिक गृहपति ने अस्वीकार करते हुए कहा—"गृहपति, मेरे पास खर्च है।"

फिर राजगह के नैगम ने सुना और खर्च देने का आग्रह किया। सम्राट ने भी सुनकर अमात्य भेजकर खर्च देने के लिए कहा, किन्तु सेट्ठि अनाथपिंडिक ने अस्वीकार करते हुए कहा—"नहीं, खर्च मेरे पास है।"

उसने भोजन की ठाठदार व्यवस्था राजगृह के सेट्ठि के घर पर करके श्रवण को सूचना दी—

"समय है भन्ते, भात तैयार हो गया!"

तब भगवान् बुद्ध पूर्वाह्न के समय सु-आच्छादित हो, पात्र-चीवर हाथ में ले, राजगृह के सेट्ठि के मकान पर आए। भिक्षुसंघ सहित आसन पर बैठे। तब अनाथपिंडिक गृहपति ने बुद्ध-सहित भिक्षुक-संघ को अपने हाथ में उत्तम खाद्य-भोज्य से संतृप्तकर,