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53. गृहपति अनाथपिण्डिक

श्रावस्ती का अनाथपिण्डिक सुदत्त सेट्ठि राजगृह में इसी समय अपने किसी काम से आया था। राजगृह में उसकी पत्नी का भाई गृहपति था। उस दिन राजगृह के श्रेष्ठी ने तथागत बुद्ध को भोजन का निमन्त्रण दिया था और वह उसकी व्यवस्था में ऐसा संलग्न था कि अपने सम्मान्य बहनोई का भी स्वागत-सत्कार भूल गया। वह दासों और कम्मकारों को आज्ञा दे रहा था—"भणे, समय पर ही उठकर खिचड़ी पकाना, भात बनाना, सूपतेमन तैयार करना।...।"

अनाथपिण्डिक सेट्ठि ने मन में सोचा—पहले मेरे आने पर यह सब काम छोड़ मेरी ही आवभगत में लगा रहता था, आज यह विक्षिप्तों के समान दासों और कम्मकारों को आज्ञा पर आज्ञा दे रहा है। क्या इसके घर आवाह होगा? या विवाह होगा? या महायज्ञ होगा? या सब राजपरिजन के सहित श्रेणिक सम्राट् बिम्बसार को इसने कल के लिए निमन्त्रित किया है?

इतने ही में गृहपति ने आकर अपने बहनोई के साथ प्रति सम्मोदन किया और निकट बैठ गया। तब सेट्ठि अनाथपिण्डिक ने कहा—

"भणे गृहपति, पहले मेरे आने पर तुम सब काम-धन्धा छोड़कर मेरी आवभगत में लग जाते थे, परन्तु आज यह क्या है? क्या तुम्हारे यहां आवाह है, या विवाह है, अथवा सम्राट् बिम्बसार निमन्त्रित हैं।"

"नहीं, मेरे यहां न आवाह है, न विवाह, न मगधराज निमन्त्रित हैं। मेरे घर कल बड़ा यज्ञ है, संघसहित बुद्ध कल के लिए निमन्त्रित हैं।"

"गृहपति, तू 'बुद्ध; कह रहा है?"

"हां, 'बुद्ध' कह रहा हूं।"

"गृहपति 'बुद्ध' कह रहा है?"

"हां, 'बुद्ध' कह रहा हूं।"

"गृहपति, क्या 'बुद्ध' कह रहा है?"

"हां 'बुद्ध' कह रहा हूं।"

"गृहपति, 'बुद्ध' शब्द लोक में दुर्लभ है। तू जिसे 'बुद्ध' कहता है, क्या मैं उसे देखने अभी जा सकता हूं?"

"अभी नहीं गृहपति। यह समय उन सम्यक्-अर्हत् भगवान् सम्यक्-सम्बुद्ध के दर्शनार्थ जाने का नहीं है। प्रत्यूष में सम्यक्-सम्बुद्ध के दर्शन होंगे।"

इसके बाद गृहपति सेट्ठि अपने प्रतिष्ठित अतिथि बहनोई के आहार-विश्राम की व्यवस्था करके फिर बुद्ध के कल के निमन्त्रण-प्रबन्ध में रात-भर जुटा रहा। अनाथपिंडिक गृहपति को भी रात-भर नींद नहीं आई। वह रात को ही सवेरा समझकर तीन बार उठा