पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२०२

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"कुछ नहीं बहुत। तो हला कलिंग, तुम्हारा सदुद्देश्य सफल हो। मैं दासीपुत्री न होती तो मैं भी यह करती, परन्तु अब तुम्हारी सहायता करूंगी।"

इसी समय एक चेरी ने आकर निवेदन किया—"राजकुमार दर्शनों की आज्ञा चाहते हैं।"

"आएं यहां।" नन्दिनी ने कहा।

राजकुमार विदूडभ ने आकर माता को अभिवादन किया।

नन्दिनी ने हंसकर कहा—

"यह तुम्हारी नई मां हैं पुत्र, इनका अभिवादन करो।"

विदूडभ ने कहा—

"पूज्ये, अभिवादन करता हूं।"

"यह तुम्हारा अनुगत पुत्र है हला, आयु में तुमसे तनिक ही अधिक है। परन्तु यह देखने ही में इतना बड़ा है, वास्तव में यह नन्हा-सा बालक है।" नन्दिनी ने विनोद से कहा।

कलिंगसेना ने हंसकर कहा—

"आयुष्मान् के वैशिष्ट्य को बहुत सुन चुकी हूं। कामना करती हूं, आयुष्मान् पूर्णाभिलाष हों।"

"चिरबाधित हुआ! इस श्रावस्ती के राजमहल में हम दो व्यक्ति तिरस्कृत थे, अब संभवतः तीन हुए।"

"मैंने समझा था, मैं अकेली हूं; अब तुम्हें और देवी नन्दिनी को पाकर मैं बहुत सुखी हुई हूं।"

देवी नन्दिनी ने उठते हुए कहा—

"हला कलिंग, मैं अब जाती हूं, परन्तु एक बात गांठ बांधना। इस राजमहालय में एक पूजनीया हैं, मल्लिका पट्टराजमहिषी। वे मेरी ही भांति एक नगण्य माली की बेटी हैं, पर मेरी भांति त्यक्ता नहीं। वे परम तपस्विनी हैं। उनके धैर्य और गरिमा का अन्त नहीं है। उनकी पद-वन्दना करनी होगी।"

"पूज्य-पूजन से मैं असावधान नहीं हूं देवी नन्दिनी। मैंने महालय में आते ही राजमहिषी का अभिवादन किया था।"

"तुम सुखी रहो बहिन।"

यह कहकर नन्दिनी चली गई। विदूडभ ने भी प्रणाम कर प्रस्थान किया।