पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/१९९

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कलिंगसेना अपने कक्ष में चुपचाप बैठी सूनी दृष्टि से सुन्दर आकाश की ओर ताक रही थी, इसी समय एक प्रौढ़ महिला ने वहां प्रवेश किया। कलिंगसेना ने उसकी ओर देखा, सूर्य के प्रखर तेज के समान उसका ज्वलंत रूप था। यद्यपि उसका यौवन कुछ ढल चुका था, परन्तु उसकी भृकुटी और दृष्टि में तेज और गर्व भरा हुआ था। आत्मनिर्भरता उसकी प्रत्येक चेष्टा से प्रकट हो रही थी। कलिंगसेना ने अभ्युत्थानपूर्वक उसे आसन देकर कहा—

"यह मुझे किन महाभागा के दर्शन की प्रतिष्ठा का लाभ हो रहा है?"

प्रौढ़ा ने हंसकर कहा—"कोसल के मन्त्रिगण जिन्हें महामहिम परम-परमेश्वर देव-देव महाराजाधिराज कोसलेश्वर कहकर सम्मानित करते हैं, उनकी मैं दासी हूं। इसके प्रथम एक क्रीता दासी वासव खत्तिय की महानाम शाक्य के औरस से उत्पन्न दासी-पुत्री थी।"

कलिंगसेना ने ससंभ्रम उठकर कहा—"ओह आप महामान्या राजमहिषी सुश्री देवी नन्दिनी हैं, मैं आपकी अभिवन्दना करती हूं।"

"अच्छा, तो तुम मेरा नाम और पद भी जानती हो? यह तो बहुत अच्छा है।"

"मैंने गान्धार में आपके तेज, प्रताप और पाण्डित्य के विषय में बहुत-कुछ सुना है।"

"अरे इतना अधिक? किन्तु अपनी कहो, तुम तो तक्षशिला की स्नातिका हो! तुमने वेद, ब्राह्मण, आरण्यक सब पढ़े हैं। और कौन-कौन-सी दिव्य विद्याएं जानती हो हला, सब कहो।"

"मैं आपकी अकिञ्चन छोटी बहिन हूं देवी नन्दिनी, इस पराये घर में मुझे सहारा देना।" कलिंगसेना की नीलमणि-सी ज्योतिवाली आंखें सजल हो गईं।

नन्दिनी ने उसे खींचकर हृदय से लगाया और कहा—

"क्या बहुत सूना-सूना लगता है बहिन?"

"अब नहीं देवी, आपको पाकर।"

नन्दिनी ने उसकी ठोड़ी ऊपर करके कहा—"हताश मत हो, प्रारम्भ ऐसा ही सुना लगता है, परन्तु पराये को अपना करने ही में स्त्री का स्त्रीत्व कृतार्थ है। तुम्हें अपदार्थ को निर्माल्य अर्पण करना होगा।"

"यह तो मैं कदापि न कर सकूँगी।"

"तो राजमहिषी कैसे बनोगी?"

"उसकी मुझे तनिक भी अभिलाषा नहीं है।"

"तब घोड़े पर चढ़कर इतने चाव से इतनी दूर आईं क्यों?"

नन्दिनी की व्यंग्य वाणी और होंठों पर कुटिल हास्य देखकर कलिंगसेना भी हंस दी। हंसकर कहा—"केवल आपको देखने के लिए।"

"मुझे तो देख लिया, अब पतिदेव को भी देखना।"

"उसकी मुझे साध नहीं है।"

"नारी-जन्म लेकर ऐसी बात?"

"नारी-जन्म ही से क्या हुआ?"

"हुआ क्यों नहीं? नारी-जन्म पाया तो पुरुष को आत्मार्पण भी करो।"

"यह तो स्त्री-पुरुष का नैसर्गिक आदान-प्रतिदान है।"

"वह गान्धार में होगा हला; यहां केवल स्त्री ही आत्मार्पण करती है, पुरुष नहीं।