पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/१९४

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गया। उस पार जाकर कुण्डनी ने संकेत किया और चट्टान की आड़ में हो गई। सोम ने संतोष की सांस ली और कुमारी के निकट आकर अवरुद्ध कण्ठ से कहा—"अब आप राजनन्दिनी, साहस कीजिए। आपका धूम्रकेतु असाधारण अश्व है। ज्यों ही मैं तीर फेंकू, आप अश्व को छोड़ दीजिए।" उसने धूम्रकेतु की पीठ थपथपाई। राजनन्दिनी ने दांतों से होंठ काटे और उत्तरीय भली-भांति सिर पर लपेटा। सोम ने बाण छोड़ा और राजकुमारी ने अश्व की वल्गु का एक झटका दिया। अश्व हवा में तैरता हुआ पार हो गया—सोम का मुख आनन्द से खिल गया। अब उन्होंने शम्ब की ओर मुड़कर कहा—"शम्ब, यदि मैं असफल होऊं तो तू प्राण रहते राजकुमारी की रक्षा करना!"

शम्ब ने स्वामी के चरण छुए। सोम ने फिर बाण फेंका, शम्ब ने अश्व को संकेत किया। अश्व हवा में उछला और पार हो गया। अब सोम की बारी थी। परन्तु अब शत्रु निकट आकर फैल गए थे।

सोम ने अश्व को थपथपाया और एड़ लगाई, अश्व उछला और इसी समय एक बाण आकर सोम की गर्दन में घुस गया और सोम वायु से टूटे वृक्ष की भांति घाटी में गिर गया। शम्ब चीत्कार करके दौड़ पड़ा, राजकुमारी हाय कर उठीं। कुण्डनी का मुंह फक् हो गया। राजकुमारी घाटी की ओर लपकीं, परन्तु कुण्डनी ने हाथ पकड़कर उन्हें रोककर कहा—"क्षण-भर ठहरो हला, शम्ब उनकी सहायता पर है।" उधर से बाणों का मेह बरस रहा था, उनमें से अनेक शम्ब के शरीर में घुस गए। उसके शरीर से रक्त की धार बह चली। पर उसने इसकी कोई चिन्ता नहीं की। वह मूर्छित सोम को कन्धे पर लादकर इस पार ले आया।

"और अश्व, शम्ब?" कुण्डनी ने उद्वेग से कहा—"दोनों अश्व मर गए।" शम्ब ने हांफते-हांफते कहा। बाण वहां तक आ रहे थे और शत्रु घाटी पार करने की चेष्टा कर रहे थे। कुण्डनी ने कहा—"शम्ब, इन्हें राजकुमारी के घोड़े पर रखो और तुम मेरे साथ-साथ आओ। एक क्षण का विलम्ब भी घातक होगा।"

इसी समय सोम की मूर्छा भंग हुई। उसने राजकुमारी को सामने देखकर सूखे कण्ठ से कहा—"कुण्डनी, तुम राजकुमारी को लेकर भागो। हम लोग—मैं और शम्ब—तब तक शत्रु को रोकेंगे।"

राजकुमारी ने आंखों में आंसू भरकर कहा—"नहीं, आप मेरे अश्व पर आइए।"

"व्यर्थ है, हम सब मारे जाएंगे।"

इसी बीच शम्ब ने तीर मारकर दो शत्रुओं को धराशायी कर दिया। सोम ने साहस करके तीर खींचकर कण्ठ से निकाल दिया। खून की धार बह चली। राजकुमारी ने लपककर अपना उत्तरीय सोम के कण्ठ से बांध दिया और कहा—"उठो भद्र, मेरे अश्व पर।"

"नहीं राजकुमारी, तुम भागो। एक-एक क्षण बहुमूल्य है।"

"मैं आपको छोड़कर नहीं जाऊंगी।" और वह सोम के वक्ष पर गिर गई।

सोम के घाव से अब भी रक्त निकल रहा था। एक शत्रु घाटी के इस पार आ गया था, उसे शम्ब ने बाण से मारकर कहा—

"बहुत शत्रु इस पार आ रहे हैं।"

सोम ने कांपते हाथों से राजकुमारी को अलग करके कहा—"ईश्वर के लिए कुमारी,