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47. दास नहीं, अभिभावक

पूरा दिन चारों अश्वारोहियों ने घोड़े की पीठ पर व्यतीत किया। वे नगर, जनपद, वीथी सबको बचाते हुए गहन वन में चलते ही गए। मार्ग में दो-एक हिंसक जन्तु मिले। शंब ने उनका आखेट किया। परन्तु सोम अत्यन्त खिन्न मुद्रा से सबके आगे-आगे जा रहे थे। उनमें बातचीत का भी दम नहीं था। उनके पीछे कुण्डनी राजकुमारी को दाहिने करके चली जा रही थी। राजकुमारी अत्यन्त म्लान, थकित और शोकाकुला थीं। परन्तु जब-जब उनसे विश्राम के लिए कहा गया, उन्होंने कहा—

"नहीं, चले ही चलो, मैं और चल सकती हूं।"

शंब सबके पीछे चारों ओर देखता, सावधानी से चल रहा था। एकाध बात कुण्डनी कर लेती थी। फिर सन्नाटा हो जाता था। कभी-कभी वायु लम्बे वृक्षों और पर्वत-कन्दराओं से टकराकर डरावने शब्द करती थी। कुमारी का चेहरा पत्थर की भांति भावहीन और सफेद हो गया था और उनके नेत्रों की ज्योति जैसे बुझ चुकी थी।

सोम ने अतिविनय से एक-दो बार कुमारी से विश्राम कर लेने और थोड़ा-बहुत आहार करने को कहा था, परन्तु कुमारी बहुत भीत थीं। उन्होंने हर बार भीत दृष्टि से कुण्डनी की ओर ताककर कहा—"नहीं हला, अभी चले चलो। धूमकेतु थका नहीं है, मैं भी थकी नहीं हूं।"

सोम कुमारी की व्यग्रता तथा वैकल्प को समझते थे। इसी से वह चुप हो रहे। वे चलते ही गए। मध्याह्न की प्रखर धूप धीमी पड़ गई। अश्वारोही और अश्व एकदम थक गए। सोम ने एक उंचे स्थान पर चढ़कर चारों ओर दृष्टि फेंकी। कुछ दूर उन्हें बस्ती के चिह्न प्रतीत हुए। उन्होंने तनिक रुककर शंब से कहा—"शंब, आखेट का ध्यान रख।" और फिर कुण्डनी के निकट जाकर कहा—"वहां बस्ती मालूम होती है। आज रात वहीं व्यतीत करनी होगी।"

और उसने बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए उधर ही प्रस्थान कर दिया। सूर्यास्त होने तक ये लोग नगर उपकूल में पहुंच गए। नगर में न जाकर उन्होंने नगर के प्रान्त-भाग में अवस्थित एक चैत्य में विश्राम करना ठीक समझा। चैत्य बहुत पुराना और भग्न था। उसके एक कक्ष की दीवार बिलकुल टूट गई थी, फिर भी वहां विश्राम किया जा सकता था। निकट ही एक पुष्करिणी थी।

अश्वों ने जल पिया और अश्वारोहियों ने भी। राजकुमारी के विश्राम की सम्पूर्ण व्यवस्था कर सोम ने चिन्तित भाव से कुण्डनी की ओर देखा। शंब ने एक सांभर मारा था। उसकी ओर निराशा से ताककर सोम ने कहा—"कुण्डनी, यह क्या राजनन्दिनी के आहार के लिए यथेष्ट होगा?"

"परन्तु किया क्या जाय? नगर में जाने से कदाचित् थोड़ा दूध मिल सके। परन्तु