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35. शंब असुर का साहस

चम्पा-दुर्ग के दक्षिण बुर्ज के निकट चन्दना के तट से थोड़ा हटकर एक शून्य चैत्य था। वह बहुत विशाल था, परन्तु इस समय वहां एकाध विहार को छोड़कर सब खंडहर था। उधर लोगों का आवागमन नहीं था। वहीं एक अपेक्षाकृत साफ-सुथरे अलिन्द में बीस भट एकत्र थे। वे सब शंब को लेकर आनन्द कर रहे थे। जो तरुण असुर सोम ने उस असुरपुरी से प्राणदान कर पकड़ा था, उसका नाम उन्होंने रखा था शंब। अपने इस नये नाम से वह बहुत प्रसन्न था। मागध तरुण उसे अच्छी-अच्छी मदिरा पिलाते तथा अनेक प्रकार के मांस और मिष्टान्न खिलाते थे इससे वह उनसे बहुत हिलमिल गया था। उसने जो असुरपुरी में कुण्डनी को नृत्य करते और मृत्यु-चुम्बन करते देखा था, इस समय वह उसी की नकल कर रहा था। वह बार-बार अपनी स्वर्ण करधनी छूकर, हाथ मटकाकर कभी-कभी भाण्ड में से मद्य ढालकर भटों को पिलाने का अभिनय करता और कभी कुण्डनी ही की भांति चुम्बन-निवेदन करता। सब लोग उसे घेरकर उसके नृत्य का आनन्द ले रहे थे। वह बार-बार अपना नवीन नाम शंब-शंब उच्चारण करता हुआ, आसुरी भाषा का कोई बढ़िया-सा प्रणय गीत गाता हुआ, सब भटों को चुम्बन-निवेदन कर रहा था और मागध भट उनके मोटे-मोटे काले होंठों के स्पर्श से बचने के लिए पास आने पर उसे धकेलकर हंस रहे थे। वाद्य के अभाव में एक भट पत्थर के सहारे लेटा अपना पेट ही बजा रहा था और सब लोग ही-ही करके हंस रहे थे।

क्षण-भर सोम यह सब देखता रहा। एक क्षीण हास्य-रेखा उसके होंठों पर फैल गई। फिर उसने पुकारा—"शंब, क्या आज तूने फिर बहुत मद्य पिया है?"

शंब ने एक बार झुककर स्वामी को प्रणाम किया, फिर भीत-भाव से उनकी ओर देखा। परन्तु सोम की मुद्रा देख वह हंस पड़ा। उसके काले काजल-से मुख में धवल दन्तपंक्ति बड़ी शोभायमान दीखने लगी।

उसने कहा—"नहीं स्वामी, नहीं।"

सोम ने उस पर से दृष्टि हटाकर बीसों भटों पर मार्मिक दृष्टि डाली और दृढ़ स्थिर स्वर में कहा—"मित्रो, आज हमें मृत्यु से खेलना होगा, कौन-कौन तैयार है?"

"प्रत्येक, भन्ते सेनापति!"

"परन्तु मित्रो, हमारे आज के कार्य का प्रभाव मगध के भाग्य-परिवर्तन का कारण होगा।"

"हम प्राणों का उत्सर्ग करेंगे भन्ते!"

"आश्वस्त हुआ, मित्रो!"

"अभी एक दण्ड रात्रि व्यतीत हुई है, हम तीन दण्ड रात्रि रहते प्रयाण करेंगे। अभी हमारे पास चार घटिका समय है। आप तब तक एक-एक नींद सो लें।"