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"परन्तु किस प्रकार मित्र?"
"उसी दक्षिण बुर्ज के नीचे से। उधर पहरा नहीं है और एक मछुआ मेरा मित्र है। मेरे आदमी शिविर में तीन पहर रात गए तक पहुंच जाएंगे। कोई कानों-कान न जान पाएगा।"
"वाह मित्र, यह व्यवस्था बहुत अच्छी रहेगी। परन्तु तुम्हारे पास मछुआ मित्र की मुझे भी आवश्यकता होगी।"
"कब?"
"उस बैशाखी की रात को।"
"ओह, समझ गया। सैनिकों को पहुंचाकर वह अपनी डोंगी-सहित वहीं कहीं कछार में चार दिन छिपा रहेगा। फिर समय पर आप उससे काम ले सकते हैं।"
"धन्यवाद मित्र! तो अब मैं आर्य को यह सुसंवाद दे दूं?"
"और मेरा अभिवादन भी मित्र!"
सोमप्रभ ने लुहार का आलिंगन किया और वहां से चल दिए।