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"बस, कुछ नावों को आज रात के अंधेरे में यहां खींच लाया जाय और उनमें रेत भर दिया जाय।"
"यह हो जाएगा। परन्तु तुम्हारे सौ सैनिक?"
"रात को तीसरे पहर तक पहुंच जाएंगे।"
"ठीक है, तब तक तुम...?"
"मैं एक चक्कर नगर का लगाकर उसका मानचित्र तैयार करता हूं।"
"तुम्हें कुछ चाहिए आयुष्मान्?"
"कुछ नहीं भन्ते? परन्तु अब मैं चला।" सोमप्रभ सेनापति का अभिनन्दन करके चल दिया। मागध योद्धाओं की सूखी आशा-लता पल्लवित हो उठी। घायल योद्धा भी बीर दर्प से हुंकार भरने लगे।