पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/१४१

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अलौकिक छटा प्रदर्शित की। ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह हवा में तैर रही हो। उसके नेत्र और अधरोष्ठ मानो मद-निमन्त्रण-सा देने लगे।

शम्बर ने असंयत होकर चिल्लाकर कहा—"चुम्बन करो इस मागध मानुषी का।"

सोम ने चिल्लाकर कहा—"जो कोई चुम्बन करेगा, उसकी मृत्यु होगी। महान् शम्बर इसके ज़िम्मेदार हैं।"

"चुम्बन करो! चुम्बन करो!" शम्बर ने पुकारकर कहा। उसमें अब सोचने-विचारने की कुछ भी शक्ति न थी। एक तरुण ने हठात् कुण्डनी को अपने आलिंगन में कसकर अधरों पर चुम्बन लिया। वह तुरन्त बिजली के मारे हुए प्राणी की भांति निष्प्राण होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। सोम यह चमत्कार देख भय से पीला पड़ गया। कुण्डनी ने उधर भ्रूपात नहीं किया। उसने दूसरे तरुण की ओर मुस्कराकर देखा। उसने भी आगे बढ़कर कुण्डनी को कसकर बाहुपाश में बांधकर चुम्बन लिया और उसकी भी यही दशा हुई। अब तो उन्मत्त की भांति असुरगण कुण्डनी का चुम्बन ले-लेकर और निष्प्राण हो-होकर भूमि पर गिरने लगे। एक अलौकिक-अतर्कित मोह के वशीभूत होकर असर एक के बाद एक होती हुई मृत्यु की परवाह न कर उस असाधारण उन्मादिनी के आलिंगन-पाश में आकर और उसका अधर चूम-चूमकर ढेर होने लगे। शम्बर बार-बार मद्य पी रहा था। असुरों के इस प्रकार आश्चर्यजनक रीति से मरने पर उसको विश्वास नहीं होता था। प्रत्येक असुर के चुम्बन के बाद निष्प्राण होकर गिरने पर कुण्डनी ऐसे मोहक हास्य से शम्बर की ओर देखती कि वह समझ ही नहीं पाया कि वास्तव में उसके तरुण मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं या विमोहित-मूर्छित हो रहे हैं। सोमप्रभ बराबर मद्य के पात्र पर पात्र शम्बर के कण्ठ से उतार रहा था। अब कुण्डनी ने एक-एक तरुण के निकट जाकर चुम्बन-निवेदन करना प्रारम्भ किया। कुछ असुर भयभीत हो गए थे, पर उस मोहिनीमूर्ति के चुम्बन-निवेदन को अस्वीकार करने की सामर्थ्य मूर्ख, मद्य-विमोहित असुरों में न थी। वे चुम्बन ले-लेकर प्राण गंवाते गए। देखते-देखते मृतक असुर तरुणों के ढेर लग गए। कुण्डनी अब वृद्ध मन्त्रियों की ओर झुकी परन्तु वे भयभीत होकर झिझककर पीछे हट गए। कुण्डनी ने उन्हें हठात् अपने आलिंगन-पाश में बांधकर उनके होंठों पर अपना चुम्बन अंकित कर दिया और वे निष्प्राण होकर जहां के तहां ढेर हो गए। सोम ने घबराकर, उसके निकट आकर कहा—"तो कुण्डनी, तुम विषकन्या हो?"

कुण्डनी ने नृत्य करते हुए कहा—"सावधान रहो! संकट-काल निकट है, देखो उसके तेवर।"

शम्बर अब सावधान हुआ और क्रुद्ध नेत्रों से कुण्डनी को ताकने लगा। कुण्डनी ने यह देखकर मुस्कराकर बंकिम कटाक्षपात कर एक परिपूर्ण मद्य-पात्र उसके होंठों से लगा दिया। परन्तु उसने कुण्डनी को एक ओर धकेल कर मद्यपात्र फेंक दिया। उसने फिर गुर्राकर कहा—"क्या तूने मेरे तरुणों का हनन किया?"

सोम ने शम्बर की बात उसे समझा दी। कुण्डनी ने संकेत से कहा कि वह शम्बर के पाश्र्व में ही रहे और उसके सिंहासन के बगल में जो बर्छे और शूल लगे हैं, आवश्यकता पड़ने पर उनसे काम ले। पर इसमें वह जल्दी न करे, संयम और धैर्य से अन्तिम क्षण तक कुण्डनी का कौशल देखे।