सोम ने कहा—"वह कहती है, आज आनन्दोत्सव में सब योद्धाओं को महाशक्तिशाली शम्बर के नाम छककर मद्य पीने की आज्ञा होनी चाहिए।
"पिएं वे सब! शम्बर ने हंसते-हंसते कहा और कुण्डनी ने और एक घड़ा शम्बर के मुंह से लगा दिया। उसे पीने पर शम्बर के पांव डगमगाने लगे।"
कुछ असुरों ने आकर कहा—"भोज, भोज, अब भोज होगा।"
शम्बर ने यथासंभव संयत होकर हिचकियां लेते हुए कहा—"मेरी इस मानुषी हिकू–सुन्दरी के सम्मान में सब कोई खूब खाओ, पियो, हिक्-अनुमति देता हूं—हिक्—खूब खाओ, पियो। मुझे सहारा दे,—मानुषी हिक्—और मागध मानव, तू भी स्वच्छन्द खा-पी—हिक्।" फिर वह कुण्डनी पर झुक गया।
सोम से असुर का अभिप्राय समझकर कुण्डनी ने असुर को उसी शिलाखण्ड पर बैठाया। उसकी एक बगल में आप बैठी और दूसरी बगल में सोम को बैठने का संकेत किया। समूचा भैंसा, जो आग पर भूना जा रहा था, खण्ड-खण्ड किया गया। सबसे प्रथम उसका सिर एक बड़े थाल में लेकर पचास-साठ तरुणियों ने शम्बर के चारों ओर घूम-घूमकर नृत्य करना और चिल्ला-चिल्लाकर गाना आरम्भ कर दिया। भैंसे के सिर का वह थाल एक-से दूसरी के हाथों हस्तान्तरित होता—जिसके हाथ में वह थाल जाता, वह तरुणी गीत की नई कड़ी गाती, फिर उसे सब दुहारकर चारों ओर घूम-घूमकर नृत्य करतीं। अन्ततः एक सुसज्जित तरुणी असुर सुन्दरी ने घुटनों के बल बैठकर वह थाल शम्बर को अर्पण कर दिया।
शम्बर ने छुरा उठाया, भैंसे की जीभ काट ली और उसे स्वर्ण के एक पात्र में रख खड़े होकर उसे कुण्डनी को पेश करके कुछ कहा। कुण्डनी ने सोम से पूछा—"क्या कह रहा है यह?"
"तेरा सर्वाधिक सम्मान कर रहा है। जीभ का निवेदन सम्मान का चिह्न है।"
"तो उसे मेरी ओर से धन्यवाद दे दो सोम।"
सोम ने आसुरी भाषा में पुकारकर कहा—"महान् शम्बर को मागध सुन्दरी अपना हार्दिक धन्यवाद निवेदन करती है। पियो मित्रो, इस मागध सुन्दरी के नाम पर एक पात्र।"
"मागध सुन्दरी, मागध सुन्दरी," कहकर शम्बर एक बड़ा मद्यपात्र लेकर नाचने लगा। अन्य असुर भी पात्र भरकर नाचने लगे।
असुरों की हालत अब बहुत खराब हो रही थी। उनके नाक तक शराब ठुंस गई थी और उनमें से किसी के पैर सीधो न पड़ते थे। अब उन्होंने भैंसे का मांस हबर-हबर करके खाना प्रारम्भ किया। कुण्डनी ने कहा, "भाण्डों में अभी सुरा बहुत है सोम, यह सब इन नीच असुरों की उदरदारी में उंड़ेल दो।" सोम ने फिर सुरा ढालकर असुरों को देना प्रारम्भ किया और कुण्डनी शम्बर को पिलाने लगी।
शम्बर ने हकलाकर कहा—"मानुषी, अब-तू-नाच।"
उसका अभिप्राय समझकर कुण्डनी ने संकेत से सोम से कहा कि अब समय है, अपना मतलब साधो।"
सोम ने कहा—"महान् शम्बर ने मागध बिम्बसार की मैत्री स्वीकार कर ली है। क्या इसके लिए सब कोई एक-एक पात्र न पिएंगे?"
"क्यों नहीं। किन्तु सेनिय बिम्बसार क्या ऐसी सौ तरुणी देगा?"