29. असुर भोज
दुर्ग के बीचोंबीच जो मैदान था, उसी में भोज की बड़ी भारी तैयारियां हुई थीं। बीचोंबीच एक बड़े भारी अग्निकुण्ड में महाचिता के समान आग जल रही थी और उस पर एक समूचा भैंसा भूना जा रहा था। बहुत-से असुर-बालक, बालिका, तरुणियां, वृद्धाएं और वृद्ध असुर शोर करते आग के इधर-उधर घूम रहे थे। ज्योंही कुण्डनी ने सोमप्रभ का हाथ पकड़कर रंगभूमि में प्रवेश किया, चारों ओर कोलाहल मच गया। मंच पर बीचोंबीच एक ऊंचे शिलाखण्ड पर व्याघ्रचर्म बिछा था। यह सम्भवतः शम्बर के लिए था। परन्तु कुण्डनी असीम साहस करके सोम का हाथ पकड़ उसी शिलाखंड पर जा बैठी। असुर सुन्दरियां और मन्त्रीगण घबरा गए। शम्बर क्या यह सहन कर सकेगा? असुर अपने राजा का बल और क्रोध जानते थे, पर कुण्डनी उसकी दुर्बलता जान गई थी।
उसने सोम से कहा—"असुरों से कहो सोम, सुरा-भाण्ड यहां ले आएं।"
सोम के कहने पर कई असुर तरुण सुरा-भाण्ड वहीं ले आए। इसी बीच ज़ोर से बाजे बजने लगे। असुरों ने भीत होकर देखा, शम्बर खूब ठाठ का शृंगार किए चला आ रहा है। उसने स्वर्ण का मुकुट धारण किया था। उसका सम्पूर्ण वक्ष नाभि-प्रदेश तक स्वर्ण से ढका था। कमर में नया चर्म लपेटे था और भुजदण्डों पर भी स्वर्ण-वलय पहने था। कण्ठ में बड़े-बड़े मोती और मूंगों की लड़ें पड़ी थीं। मुकुट के दोनों ओर स्वर्णमण्डित दो पशुओं के तीक्ष्ण सींग लगे हुए थे।
सोम ने कहा—"कुण्डनी, असुरराज का सिंहासन छोड़ दे।"
कुण्डनी ने सोम की बात पर ध्यान न दे, उसे एक वाक्य आसुरी भाषा में झटपट सीखकर, ज्योंही शम्बर सीढ़ी चढ़ रंगभूमि में प्रविष्ट हुआ, शिलाखण्ड पर खड़ी हो चिल्लाकर कहा—"महासामर्थ्यवान् शम्बर के स्वास्थ्य और दीर्घायु के नाम पर और उसने प्याले भर-भरकर असुरों को देने प्रारम्भ किए। तरुण और वृद्ध असुर इस अनिन्द्य सुन्दरी मानुषी बाला के हाथ से मद्य पी-पीकर उच्च स्वर में चिल्लाने लगे—"महासामर्थ्यवान् शम्बर के दीर्घ जीवन के नाम पर!"
क्षण-भर खड़े रहकर असुरराज ने यह दृश्य देखा और फिर वह मुस्कराकर अपना स्वर्णदण्ड ऊंचा उठाए आगे बढ़ा। उसने दोनों हाथ फैलाकर कहा—"मुझे भी दे मानुषी, एक भाण्ड मद्य। मुझे भी अपने हाथों से दे।"
कुण्डनी खट्-से शिलाखण्ड से कूद पड़ी। उसके हाथ में मद्य-भरा पात्र था। उसने नृत्य करके, नेत्रों से लीला-विस्तार करते और भांति-भांति की भावभंगी दिखाते हुए शम्बर के चारों ओर घूम-घूमकर नृत्य करना प्रारम्भ किया। उसका वह मद-भरा यौवन, वह उज्ज्वल-मोहक रूप, उसकी वह अद्भुत भावभंगी, इन सबको देख शम्बर काम-विमोहित हो गया। उसने कहा—"दे मानुषी, मुझे भी एक भाण्ड दे।"