पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/१३१

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सोम ने एकबार भली-भांति असुरराज के दरबार को देखा और धीरे-से कुण्डनी के कान में कहा—"इस असुर के पास तो स्वर्ण का बड़ा भण्डार दीख पड़ता है।"

"चुप! उच्च स्वर से असुर का अभिनन्दन करो।"

कुण्डनी का संकेत पाकर सोम ने आसुरी भाषा में कहा—"जिस असुरराज शम्बर की अमोघ शक्ति और महान् वैभव की कहानियां मनुष्य, देव और गन्धर्व घर-घर कहते नहीं अघाते, उनका मैं सोमप्रभ अभिनन्दन करता हूं।"

यह सुनकर असुरराज ने मुस्कराकर वृद्ध मंत्रियों से कुछ कहा। फिर सोम की ओर देखकर कहा—"गन्धर्व है या मनुष्य?"

"मनुष्य।"

"कहां का?"

"मगध का।"

"मगध के सेनिय बिम्बसार को मैं जानता हूं। परन्तु वह मेरा मित्र नहीं है। तू मेरे राज्य की सीमा में क्यों घुसा? जानता है, यह अक्षम्य अपराध है और उसका दण्ड है मृत्यु।"

"महासामर्थ्यवान् शम्बर का यह नियम शत्रु के लिए है, मित्र के लिए नहीं। प्रतापी मागध सम्राट् बिम्बसार असुरराज से मैत्री करना चाहते हैं।"

असुर ने फिर झुककर मन्त्रियों से परामर्श किया। फिर उसने कहा—"मागध बिम्बसार दनुकुल का था। अब वह मनुकुल में चला गया है तथा मनुष्य-धर्म का पालन कर रहा है। इसी से वह मेरा मित्र नहीं है। मनुकुल सदैव देवकुल का मित्र होता है, दनुकुल का नहीं।"

"परन्तु मागध बिम्बसार दनुकुल-भूषण सामर्थ्यवान् शम्बर की मित्रता चाहता है। उसका मैत्री-संदेश ही मैं लाया हूं।"

शम्बर ने मन्त्रियों से फिर परामर्श किया और कहा—"इसका प्रमाण क्या है?"

"यही, कि मैं विजयिनी मागध सैन्य साथ न लाकर एकाकी ही यहां चला आया हूं। मुझे विश्वास था कि महान् शम्बर मित्रवत् हमारा स्वागत करेगा।"

इस पर शम्बर ने बड़ी देर तक मन्त्रियों से विचार-विमर्श किया और फिर कुण्डनी की ओर संकेत करके कहा—"वह कौन सुन्दरी है?"

"वह भी मागधी है।"

"तब सेनिय बिम्बसार ऐसी सौ सुन्दरी मुझे दे, तो मैं बिम्बसार का मित्र हूं।"

सोमप्रभ का मुंह क्रोध से लाल हो गया। कुण्डनी ने उसपर लक्ष्य करके कहा—"बेकूफी मत करना सोम। वह क्या कह रहा है।"

"वह तुम्हारी-जैसी सौ सुन्दरी मित्रता के शुल्क में मांग रहा है।"

"उससे कहो, मागधी तरुणी विद्युत्प्रभ होती है। असुर उसे भोग नहीं सकते। उसे छूते ही असुरों की मृत्यु हो जाएगी।"

शम्बर ने कहा—"वह सुन्दरी बाला क्या कह रही है?"

"वह कहती है, मगध के सम्राट् सामर्थ्यवान् शम्बर की यह शर्त पूरी कर सकते हैं, परन्तु बाधा यह है कि मागधी तरुणियां विद्युत्प्रभ होती हैं। उन्हें भोगने की सामर्थ्य असुरों में नहीं है। उन्हें छूते ही असुरों की मृत्यु हो जाएगी।