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घी-चीनी डालकर दो बड़े-बड़े मधुगोलक बनाए। उनमें से एक में मुट्ठी-भर रत्न-मणि भी भर दिए। पाथेय हर्षदेव के हाथ में देकर हौले-से कहा—"भद्र, चम्पा जाना, वहां पिता के यहां रहकर मेरी प्रतीक्षा करना।"
इतना कह वह हर्म्य में चली गई और हर्षदेव डाल से टूटे पत्ते की भांति फिर निराश्रय हो पथ पर आगे बढ़ा।