पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/१०३

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को उत्तम आहार खाने को, उत्तम प्रासाद रहने को और सुन्दरी दासियां भोगने को दे दी जाएं। वे उन्हीं का गीत गाएंगे।"

"सच कहते हो मित्र गौतम।"

"अरे मैंने वे नियम बनाए हैं मित्र, कि तू भी क्या कहेगा। यदि शूद्र किसी द्विज को गाली दे या मारे तो उसका वही अंग काट डाला जाए, उसने वेदपाठ सुना हो तो कान में टीन या शीशा पिघलाकर भर दिया जाए। वेद पढ़ा हो तो उसकी जीभ काटकर टुकड़े कर दिए जाएं।"

"अरे वाह मित्र गौतम, अनर्थ किया तूने। बेचारे शूद्रों और..."

"तो और उपाय ही क्या है? भाई देखते नहीं, ब्राह्मणों का कैसा ह्रास हो रहा है।"

"अच्छा फिर, देखूं कब तक तेरा सूत्र सम्पूर्ण होगा। अभी तो विश्राम करना चाहिए।"

"तो विश्राम कर मित्र, शय्या तैयार है।"