यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४३
तृतीय सर्ग
चौपदे
बड़े भ्राता की बाते सुन ।
विलोका रघुकुल - तिलकानन ॥
सुमित्रा सुत फिर यो बोले।
हो गया व्याकुल मेरा मन ।।५४।।
आपकी भी निन्दा होगी।
समझ मैं इसे नही पाता।
खौलता है मेरा लोहू ।
क्रोध से मैं हूँ भर जाता ।।५५।।
आह । वह सती पुनीता है।
देवियों सी जिसकी छाया ।।
तेज जिसकी पावनता का।
नही पावक भी सह पाया ॥५६।।
हो सकेगी उसकी कुत्सा।
मैं इसे सोच नही सकता ।।
खड़े हो गये रोंगटे हैं।
गात भी मेरी है कॅपता ॥५७।।
यह जगत सदा रहा अंधा।
सत्य को कब इसने देखा ।
खीचता ही वह रहता है।
लांछना की कुत्सित रेखा ।।५८।।