पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/६६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

वैदेही-वनवास

परस्पर प्रीति का समझ लाभ ।
हुए मानवता की अनुभूति ॥
सुखित है जनता सुख - मुख देख ।
पा गये वांछित सकल - विभूति ॥५८।।

दानवों का हो गया निपात ।
तिरोहित हुआ प्रबल आतंक ॥
दूर हो गया धर्म का द्रोह ।
शान्तिमय बना मेदिनी अंक ॥५९॥

निरापद हुए सर्व - शुभ - कर्म ।
यज्ञ - वाधा का हुआ विनाश ॥
टल गया पाप - पुंज तम - तोम ।
विलोके पुण्य - प्रभात - प्रकाश ॥६०॥

कर रहे हैं सब कर्म स्वकीय ।
समझ कर वर्णाश्रम का मर्म ॥
बन गये हैं मर्यादा - शील ।
धृति सहित धारण करके धर्म ॥६१॥

विलसती है घर घर में शांति ।
भरा है जन जन में आनन्द ॥
कही है कलह न कपटाचार ।
न निन्दित-वृत्ति-जनित छल-छन्द ॥६२।।