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वैदेही-वनवास

दानवी दे दे नाना त्रास ।
बनाकर रूप बड़ा विकराल ॥
विकम्पित किसको बना सकी न ।
दिखाकर बदन विनिर्गत ज्वाल ॥३८॥

लोक-त्रासक-दशआनन भीति ।
उठी उसकी कठोर करवाल ॥
बना किसको न सकी बहु त्रस्त ।
सकी किसका न पतिव्रत टाल ॥३९।।

कौन कर नाना - व्रत - उपवास ।
गलाती रहती थी निज गात ।।
बिताया किसने संकट - काल ।
तरु तले बैठी रह दिन रात ॥४०॥

नहीं सकती जो पर दुख देख ।
हृदय जिसका है परम - उदार ।।
सवें जन सुख संकलन निमित्त ।
भरा है जिसके उर में प्यार ॥४१।।

सरलता की जो है प्रतिमूर्ति ।
सहजता है जिसकी प्रिय - नीति ।।
बड़े कोमल हैं जिसके भाव ।
परम - पावन है जिसकी प्रीति ।।४२॥