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वैदेही-वनवास

हैं उसकी दिव्यता दमक किरणे दिखलाती।
जगी-ज्योति उसको ज्योतिर्मय है बतलाती ।।
सहज-सरसता, मोहकता, सरिता है कहती।
ललित लहर-लिपि-माला में है लिखती रहती ॥२३॥

जगी हुई जनता निज कोलाहल के द्वारा ।
कर्म-क्षेत्र में बही विविध - कर्मों की धारा ।।
उसकी जाग्रत करण क्रिया को है जतलाती ।
नाना - गौरव - गीत सहज - स्वर से है गाती ॥२४॥

लोक-नयन-आलोक, रुचिर-जीवन-संचारक ।
स्फूर्ति - मूर्ति उत्साह - उत्स जागति- प्रचारक ।
भव का प्रकृत-स्वरूप - प्रदर्शक, छबि - निर्माता ।
है प्रभात उल्लास - लसित दिव्यता - विधाता ॥२५॥

कितनी है कमनीय - प्रकृति कैसे बतलायें ।
उसके सकल- अलौकिक गुण - गण कैसे गाये ॥
है अतीव-कोमला विश्व - मोहक - छबि वाली।
बड़ी सुन्दरी सहज - स्वभावा भोली - भाली ॥२६॥

करुणभाव से सिक्त सदयता की है देवी।
है संसृति की भूति-राशि पद-पंकज-सेवी ।।
हैं उसके बहु-रूप विविधता है वरणीया। .
प्रातः- कालिक-मूर्ति अधिक तर है रमणीया ॥२७॥