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षोड़श सर्ग

पद

जय जय रघुकुल - कमल - दिवाकर ।
मर्यादा - पुरुपोत्तम सद्गुण - रत्न - निचय - रत्नाकर ॥१॥
मिथिला में जव भृगुकुल - पुंगव ने कटु वात सुनाई।
तव कोमल वचनावलि गरिमा किसने थी दिखलाई ॥२॥
बहु - विवाह को कह अवैध बन बंधुवर्ग - हितकारक ।
कौन एक पत्नीव्रत का है वसुधा - मध्य - प्रचारक ।। ३॥
पिता के वचन - पण के प्रतिपालन का वन अनुरागी।
किसने हो उत्फुल्ल देव - दुर्लभ - विभूति थी त्यागी ॥४॥
कुपित - लखन ने जनक कथन को जब अनुचित बतलाया।
धीर - धुरंधर बन तब किसने उनको धैर्य बंधाया ॥५॥
कुल को अवलोकन कर बन के बंधुवर्ग विश्वासी।
गृह की अनबन से बचने को कौन बना वनवासी ॥६॥
वन की विविध असुविधाओं को भूल विचार भलाई।
भरत - भावनाओं की किसने की थी भूरि बड़ाई ॥७॥
वानर को नर वना दिखाई किसने नरता - न्यारी।
पशुता में मानवता स्थापन नीति किसे है प्यारी ।।८।।
निरवलंब अवलंव बने सुग्रीव की वला टाली।
बिला गया किसके बल से बालिशवाली - बलशाली ॥९॥
दंडनीय ही दडित हो क्यो दडित हो सुत - जाया ।
अंगद को युवराज वना किसने यह पाठ पढ़ाया ॥१०॥
किसकी कृति से शिला सलिल पर उतराती दिखलाई ।
सिधु वॉध सगठन - शक्ति - गरिमा किसने बतलाई ॥११॥