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पचदश सर्ग

जीव जन्तु जितने जगती मे हैं बने।
सवका भला किया करना ही है भला ।
निरपराध को सता करे अपराध क्यों।
वृथा किसी पर क्यों कोई लाये बला ॥२४॥

जल को विमल बनाती हैं ये मछलियाँ।
पूत - प्रेम का पाठ पढ़ाती है सदा ॥
प्रियतम जल से बिछुड़े वे जीती नही।
किसी प्रेमिका पर क्यों आये आपदा ॥२५॥

इतना कहते जनक - नन्दिनी नयन मे।
जल भर आया और कलेजा हिल गया ।।
मानों व्याकुल बनी युगल - मछलियों को।
यथावसर अनुकूल - सलिल था मिल गया ॥२६॥

जल मे जल से गुरु पदार्थ हैं डूबते ।
मा तुमने मुझसे हैं ए बाते. कही।
काठ कहा जाता है गुरुतर वारि से।
क्यों नौका जल में निमग्न होती नहीं ॥२७॥

सुने प्रश्न कुश का माता ने यह कहा।
बड़े बड़ाई को हैं कभी न भूलते ॥
जल तरुओ को सीच'सीच है पालता।
उसके वल से वे हैं फलते - फूलते ॥२८॥