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पचदश सर्ग

समय कुसुम - कोमल प्रभात - शिशु को विहस ।
दिवस दिव्यतम - गोदी मे था दे रहा ॥
भोलेपन पर बन · विमुग्ध उत्फुल्ल हो।
वह उसको था ललक ललक कर ले रहा ॥४॥

कही कान्ति - संकलित कही कल - केलिमय।
और कहीं सरिता - प्रवाह उच्छृसित था ।
खग कलरव आकलित कान्त - तरु पुंज से।
उसका सज्जित - कूल उल्लसित लसित था ॥५॥

इसी कूल पर सीता सुअनों के सहित ।
धीरे धीरे पद - चालन कर रही थी।
उनके मन की बाते मृदुता साथ कह ।
अन्तस्तल मे वर - विनोद भर रही थी॥६॥

सात बरस के दोनों सुत थे हो गये।
इसीलिये जिज्ञासा थी प्रवला हुई।
माता से थे नाना - बाते पूछते ।
यथावसर वे प्रश्न किया करते कई ॥७॥

सरिता में थी तरल - तरंगे उठ रही ।
बार बार अवलोक उन्हें कुश ने कहा।
ए क्या हैं ? ए. किससे क्यों हैं खेलती।
मा इनमें है कैसे दीपक बल रहा ॥८॥