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चतुर्दश सर
नर - नारी निर्दोष हो सकेगे नहीं।
भौतिकता उनमें भरती ही रहेगी।
आपके सदृश , मैं भी इससे व्यथित हूँ।
किन्तु यही मानवता - ममता कहेगी ॥१५९।।
आध्यात्मिकता का प्रचार कर्तव्य है।
जिससे यथा - समय भव का हित हो सके।
आप इसी पथ की पथिका हैं, विनय है।
पॉव आप का कभी न इस पथ में थके ॥१६०॥
दोहा
विदा महि - सुता से हुई उन्हें मान महनीय ।
सुन विज्ञानवती सरुचि कथन - परम - कमनीय ॥१६॥
SA