पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/२४७

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किन्तु देखती है, यह, पुत्रवती बने ।
हुआ आपको एक साल से कुछ अधिक ॥
किन्तु अवध की दृष्टि न फिर पाई इधर ।
और आपके स्वर में स्वर भर गया पिक ॥५८॥