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वैदेही-वनवास

एक रहे उन्नत - ललाट वर - विधु - वदन ।
नव - नीरद - श्यामावदात नीरज - नयन ।।
पीन - वक्ष आजान - वाहु मांसल - वपुष ।
धीर - वीर अति - सौम्य सर्व - गौरव - सदन ॥३८॥

मणिमय - सुकुट - विमंडित कुण्डल - अलंकृत ।
बहु - विधि मंजुल - मुक्तावलि - माला लसित ॥
परमोत्तम - परिधान - वान सौंदर्य - धन ।
लोकोत्तर - कमनीय - कलादिक - आकलित ॥३९।।

थे द्वितीय नयनाभिराम विकसित - बदन ।
कनक - कान्ति माधुर्य - मूर्ति मन्मथ - मथन ॥
विविध - वर - वसन - लसित किरीटी- कुण्डली ।
कम - परायण परम - तीव्र साहस - सदन ॥४०॥

दोनों राजकुमार मुग्ध हो हो छुटा।
थे उत्फुल्ल - प्रसूनों की अवलोकते ॥
उनके कोमल - सरस - चित्त प्रायः उन्हें ।
विकच - कुसुम - चय चयन से रहे रोकते ॥४१॥

फिर भी पूजन के निमित्त गुरुदेव के।
उन लोगों ने थोड़े कुसुमों को चुना ॥
इसी समय उपवन में कुछ ही दूर पर।
उनके कानों ने कलरव होता सुना ॥४२॥