पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/२१२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७१
एकादश सर्ग

हैं स्वस्थ, सुखित या चिन्तित ।
या हैं विपन्न - हित - व्रत - रत ।।
या हैं लोकाराधन में ।
संलग्न बन परम - संयत ।।५४।।

कह कह वियोग की बाते ।
माण्डवी बहुत थी रोई।।
उर्मिला गई फिर आई।
पर रात भर नहीं सोई ॥५५॥

श्रुतिकीर्ति का कलपना तो।
अब तक है मुझे न भूला ॥
हो गये याद मेरा उर ।
वनता है ममता - झूला ॥५६॥

यह वतला दो अब मेरी।
बहनो की गति है कैसी ?
वे उतनी दुखित न हों पर,
क्या सुखित नही हैं वैसी ? ॥५७॥

क्या दशा दासियों की है।
वे दुखित तो नही रहती ।।
या स्नेह - प्रवाहों मे पड़।
यातना तो नही सहती ।।५८।।