सेवा उसकी करूं साथ रह , जी से जिसकी दासी हूँ। हूँ न स्वार्थरत, मैं पति के - संयोग - सुधा की प्यासी हूँ॥७३।।
दोहा
इतने में घंटा बजा उठा आरती - थाल । द्रुत - गति से महिजा गई मंदिर मे तत्काल ॥७४।।