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दशम सर्ग

सेवा उसकी करूं साथ रह ,
जी से जिसकी दासी हूँ।
हूँ न स्वार्थरत, मैं पति के -
संयोग - सुधा की प्यासी हूँ॥७३।।

दोहा


इतने में घंटा बजा उठा आरती - थाल ।
द्रुत - गति से महिजा गई मंदिर मे तत्काल ॥७४।।