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वैदेही-वनवास

आप मानवी हैं तो देवी कौन है।
महा - दिव्यता किसे कहाँ ऐसी मिली ।।
पातिव्रत अति पूत सरोवर अंक में।
कौन पति - रता - पंकजिनी ऐसी खिली ॥२९॥

पति - देवता कहाँ किसको ऐसी मिली।
प्रेम से भरा ऐसा हृदय न और है।
पति - गत प्राणा ऐसी हुई न दूसरी ।
कौन धरा की सतियों की सिरमौर है॥३०॥

किसी चक्रवर्ती की पत्नी आप हैं।
या लालित हैं महामना मिथिलेश की।
इस विचार से हैं न पूजिता वंदिता।
आप अर्चिता हैं अलौकिकादर्श से ॥३१॥

रत्न - जटित - हिन्दोल में पली आप थी।
प्यारी - पुत्तलिका थी मैना हगों की ।।
मिथिलाधिप - कर - कमलों से थी लालिता।
कुसुम से अधिक कोमलता थी पगों की ॥३२॥

कनक - रचित महलों में रहती थी सदा ।
चमर दुला करता था प्रायः शीश पर ।।
कुसुम - सेज थी दुग्ध - फेन - निभ - आस्तरण ।
थी विभूतियाँ अलकाधिपति - विमुग्धकर ॥३३॥