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वैदेही-वनवास

देख जनक - नन्दिनी सुमित्रा - सुअन को।
वंदन करते मुनि ने अभिनन्दन किया।
सादर स्वागत के बहु - सुन्दर - वचन कह ।
प्रेम के सहित उनको उचितासन दिया ।।१९।।

बहुत - विनय से कहा सुमित्रा - तनय ते ।
आर्या का जिस हेतु से हुआ आगमन ।।
ऋपिवर को वे सारी बाते ज्ञात हैं।
स्वाभाविक होते कृपालु हैं पुण्य - जन ॥२०॥

पुण्याश्रम का वास धर्म - पथ का ग्रहण ।
परम - पुनीत - प्रथा का पालन शुद्ध - मन ।।
क्यों न बनेगा सकल - सिद्धि प्रद वहु फलद ।
महा - महिम का नियमन - रक्षण - संयमन ॥२१॥

है मेरा विश्वास अनुष्ठित - कृत्य यह ।
होगा रघुकुल - कलस के लिए कीर्तिकर ।।
करेगा उसे अधिक गौरवित विश्व में।
विशद - वंश को उज्वल - रत्न प्रदान कर ॥२२॥

मुनि ने कहा वशिष्ठ देव के पत्र से।
सब बाते हैं मुझे ज्ञात, यह सत्य है -
लोक तथा परलोक - नयन आलोक है।
भव - सागर मे पोत समान अपत्य है ।।२३।।