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यह विचार-परम्परा भी करुण रस को विशेष गौरवित बनाती है, कि कविता का आरंभ पहले पहल इसी रस के द्वारा हुआ है। कवि-कुल-गुरु कालिदास लिखते हैं—
'निषादविद्धाण्डजदर्शनोत्थः श्लोकत्वमापद्यत यस्य शोकः।,
निषाद के बाण से विद्ध पक्षी के दर्शन से जिसका (महर्षि वाल्मीक का) शोक श्लोक में परिणत हो गया। वह श्लोक यह है—
मा निषाद प्रतिष्ठांत्वमगमः शाश्वतीः समा।
यत्क्रौच मिथुनादेक मबधीः काम मोहितम्॥
हे निषाद तू किसी काल में प्रतिष्ठा न पा सकेगा। तू ने व्यर्थ काम मोहित दो क्रौंचों में से एक को मार डाला।
वाल्मीक-रामायण में लिखा है कि यही पहला आदिम पद्य है, जिसके आधार से उसकी रचना हुई। वाल्मीक रामायण ही संस्कृत का पहला पद्य-ग्रंथ है। और उसका आधार करुण रस का उक्त श्लोक ही है। अतएव यह माना जाता है है कि कविता का आरंभ करुण रस से ही हुआ है। आश्चर्य यह है कि फारसी के एक पद्य से भी इस विचार का प्रतिपादन होता है। वह पद्य यह है—
आंकि अव्वल शेरगुफ्त आदम शफीअल्ला बुवद।
तबा मौज़ूं हुज्जतेफरजंदिये आदम बुवद॥
जिसने पहले पहल शेर कहा वह परमेश्वर का प्यारा आदम था। इसलिये 'आदमी, का मौज़ंतबा (कवि) होना 'आदम, की संतान होने की दलील है।