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पंचम सर्ग

इसी सूत्र से वाल्मीकाश्रम में तुमको मैं भेजूंगा ।
किसी को न कुत्सित विचार करने का अवसर मैं दूंगा।
सब विचार से वह उत्तम है, है अतीव उपयुक्त वही ।
यही वशिष्ट देव अनुमति है शान्तिमयी है नीति यही ॥३९॥

तपो - भूमि का शान्त-आवरण परम-शान्ति तुमको देगा।
विरह - जनित - वेदना आदि की अतिशयता को हर लेगा।
तपस्विनी नारियाँ ऋषिगणों की पत्नियाँ समादर दे।
तुमको सुखित बनायेगी परिताप शमन का अवसर दे ॥४०॥

परम - निरापद जीवन होगा रह महर्षि की छाया मे ।
धारा सतत रहेगी बहती सत्प्रवृत्ति की काया में ।
विद्यालय की सुधी देवियाँ होंगी सहानुभूतिमयी।
जिससे होती सदा रहेगी विचलित-चित पर शान्ति जयी ॥४१॥

जिस दिन तुमको किसी लाल का चन्द्र-वदन दिखलायेगा।
जिस दिन अंक तुमारा रवि-कुल-रंजन से भर जायेगा ।।
जिस दिन भाग्य खुलेगा मेरा पुत्र रत्न तुम पाओगी।
उस दिन उर विरहांधकार मे कुछ प्रकाश पा जाओगी ॥४२॥

प्रजा - पुंज की भ्रान्ति दूर हो, हो अशान्ति का उन्मूलन ।
वुरी धारणा का विनाश हो, हो न अन्यथा उत्पीड़न ॥
स्थानान्तरित - विधान इसी उद्देश्य से किया जाता है।
अत. आगमन मेरा आश्रम में संगत न दिखाता है ॥४३॥