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त्रयोदश परिच्छेद
 

स्मरण कर रही थी और भली भांति समझती हूँ कि जो कुछ तुमने कहा है वह सर्वथा सत्य और युक्तियों से परिपूर्ण है"।

कामिला-"परन्तु यद्यपि तुम्हारी बुद्धि मुझसे सहमत है तथापि तुम्हारा चित्त कुछ और ही परामर्श देता है"।

रोजाबिला―"इसमें तो सन्देह नहीं"।

कामिला―"पर पुत्री मैं तुम्हारे हृदय पर दोषारोपण भी नहीं कर सकती कि वह क्यों मेरी अनुमतिके विरुद्ध है और क्यों मेरी बातों का प्रतिवाद करता है, बरन मैंने तुमसे स्पष्ट कह दिया है कि यदि मेरी अवस्था तुम्हारी सी होती और फ्लोडोआर्डो सा पुरुष परस्पर रखता तो कदापि मैं उसके साथ निठुरता न कर सकती। मैं स्वयं स्वीकार करती हूँ कि इस अपरिचितका स्वरूप, आकृति, चाल ढाल बहुत ही उत्तम है और कोई स्त्री जिसका मन दूसरे पुरुष से न लगा हो ऐसी नहीं है जो इस पर मोहित न हो जावे। उसके सुन्दर मुखड़े में न जाने क्या बात है कि देखते ही जी उसे प्यार करने लगता है। इसके अतिरिक्त उसके ढंग अत्यंत मनोहर हैं और इन थोड़े दिवालों के अनन्तर जबसे कि वह वेनिस में आया है सब लोगों को बिदित हो गया है कि उसमें बहुत से उत्तम और प्रशंसनीय गुण मौजूद हैं। पर खेदका विषय है कि फिर भी वह एक कंगाल पथिक है, अतएव यह संभव नहीं कि बेनिस के महाराज अपनी भ्रातृजा ऐसे व्यक्तिको दें जो सच पूछो तो यहाँ भिक्षुकों की सी अवस्था में आया। पुत्री वि- श्वास करो कि ऐसा पुरुष रोजाबिला का पाणिग्रहण करने का अधिकारी नहीं है।

रोजाविला―"प्यारी कामिलो यहाँ पाणिग्रहण को चर्चा नहीं है? मैंतो केवल फूलोडो आर्डो से मित्रों की भाँति प्रीति करती हूँ"॥