आयतन में शीघ्र शीघ्र प्रविष्ट हुआ, परन्तु उसको क्षतविक्षत और रुधिराक्त देखकर उसके मित्रगण व्यस्त हो गये और कहने लगे कुशल तो है? यह क्या बात है? तुम लहूभरे क्यों हो?
कांटेराइनो―"कुछ व्यग्र होने की बात नहीं है, क्या यह मदिरा रखी है, तो शीघ्र मुझे एक प्याला भरकर दो, प्यास की अधिकता से मेरा तालू सूखा जाता है"।
फलीरी―(मदको पानपात्र में भरकर) "परन्तु कांटेरा- इनो तुमारे शरीर से रुधिर प्रवाह हो रहा है"।
कांटेराइनो―"मैं जानता हूँ मुझसे क्या कहते हो, सच जानो कि मैंने कुछ आपसे नहीं किया है"।
परोजी―"पहले तनिक हमलोगों को ब्रण बांध लेने दो और फिर हमसे कहो कि क्या दुर्घटना हुई है। अवश्य है कि सेवकों को इससे कुछ अभिज्ञता न हो, अतएव इस समय मैं ही तुम्हारा वैद्य बनूँगा"।
कांटेराइनो―"तुमलोग मुझ से पूछते हो कि मुझ पर क्या बीती? अजी यह केवल एक परिहास की बात थी, लो फलोरी मुझे एक प्याला और भरकर दो।
मिमो―"मेरा तो आतङ्क से श्वासावरोध हो रहा है"।
कांटेराइनो―"क्या आश्चर्य है, श्वासावरोध होता होगा, और मेरा भी हो जाता यदि मैं कांटेराइनों होनेके बदले मिमो होता। इसमें सन्देह नहीं कि क्षतसे रुधिर अधिक निकल रहा है परन्तु उससे किसी प्रकार की आशंका नहीं है"। यह कह कर उसने अपना परिच्छद फाड़ डाला और वक्षस्थल खोलकर उनलोगों को दिखलाया। "देखो मित्रो! यह घाव दो इञ्चसे अधिक गहरा नहीं हैं"।
मिमो―(कांपकर) "हे परमेश्वर! मुझ पर कृपा कर उसके देखने ही से मेरा हृदय विदीर्ण हुआ जाता है"।