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नवम परिच्छेद
 

अबिलाइनो―"डोलाबेला के उपवन में, जहाँ लोगोंने उसे महाराज की भ्रातृजा के चरणों के सन्निकट मृतक और रुधिर से आर्द्रं पाया। मैं नहीं कह सकता कि उसे किसने स्वयं रोजा बिलाने अथवा उसके अनुरक्तों में से किसीने मारा।"

सिन्थिया―(रोरो कर) "हाय! हाय!! बेचारा माटियो।"

अविलाइनो―"कल्ह इसी समय तुमलोग उसका मृत शरीर शूली पर लटकता देखोगे।"

पेट्राइनो―"ऐं? क्या किसीने उसको पहचान लिया?"

अबिलाइनो―"हाँ, और क्या, विश्वास मानो सबलोग अमिज्ञ हो गये कि उसकी जीवन वृत्ति क्या थी।"

सिन्थिया-"हाय! शूलीपर, बेवारा माटियो।"

टामिसो―"भाई यह विचित्र वार्त्ता है।"

बालजर―"परमेश्वर का उस मंदभाग्य पर कोप था नहीं तो भला किसे ध्यान था वा हुआ होगा कि आज ऐसी आपदा का मुख अवलोकन करना होगा।"

अबिलाइनो―"लो तुमनो सर्वथा अचेत से हो गये।"

ष्ट्र्जा―"भय और आश्चर्य्य ने मेरा कण्ठदेश ऐसा दबाया है कि मेरी सम्पूर्ण इन्द्रियां चेतनाहीन हो रही हैं।"

अबिलाइनो―"सच कहो! भाई! जीवन की शपथ है, मैं तो इस समाचार को श्रवण कर बहुत हँसा और कहने लगा प्रिय मित्र काटियो मेरे जोन तो आपको आनन्दित होना चाहिये क्योंकि आप ठंढे ठंढे विश्राम स्थान को पहुँच गये।"

टामिसो―"क्या?"

ष्ट्रजा―"क्या तुम बहुन हँसे, भला बताओ तो यहाँ हँसने का कौन अवसर है।"

अबिलाइनो―"क्यों नहीं, मैं समझता हूँ कि जिसे तुम