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वेनिस का बांका
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सिन्थिया―"क्यों अबिलाइनो तुम सदा ऐसा रोना स्वरूप क्यों बनाये रहते हो (समीप जाकर) इसी से तो तुम इतने कुरूप ज्ञात होते हो। परमेश्वर के लिये प्रत्येक समय नाक भौ न चढ़ाये रहा करो क्योंकि इससे तुम्हारी आननाकृति जैसी कि परमेश्वर ने बनायी है उसकी अपेक्षा और भी बुरी ज्ञात होती है।"

अबिलाइनो ने कुछ उत्तर न दिया

सिंथिया―सच पूछो तो तुम को अवलोकन कर मनुष्य न भी डरता हो तो डर जाय। अच्छा अबिलाइनो आओ अब हम तुम हिलमिल कर रहें, अब मैं तुम को तुच्छ नहीं समझती हूँ और न तुम्हारे स्वरूप से घृणा करती हूँ, मैं नहीं जानती इस के अतिरिक्त कि॥"

वह आगे कहने नहीं पाई थी कि अकस्मात् अबिलाइनो ऐसा चिल्ला कर बोला जैसे मृगराज गरजता है "जाव उन लोगों को जगा दो!।"

सिन्थिया―"उन लोगों को? दूर करो, उन दुष्टात्माओं को सोने भी दो, क्या तुम मेरे साथ अकेले रहते भय- भीत होते हो? ऐ है कहीं मुझे भी तो तुमने अपने समान कुरूप नहीं समझ लिया है, सच कहो, अविलाइनो तनिक मेरी ओर देखो॥"

सिन्थिया ने यह बात अपने विषय में कुछ अनुचित नहीं कही क्योंकि उसका स्वरूप किसी प्रकार हीन न था। उसकी आँखें रसीली और चंचल थीं, उसके अहि तुल्य केशजाल हृदय पर लहरो रहे थे और अरुणाधरों की लालिमा और नवीनताने पाटलकुसुम को भी पराजित कर रक्खा था। उसने अपने ओष्ट चुम्बन कराने के अभिप्राय से अविलाइनो की ओर झुकाये परन्तु इसको अबतक रोजाबिला के पुनीत चुम्बन का स्वाद