करने की आशा जाती रहती। रोजाबिला एक दिन महाराज की उत्तराधिकारिणी होगी।"
मिमो―"महाशयो! मुझसे तो इतना ही हो सकता है कि मुद्रा से तुम्हारी सहायता करूं मेरे बूढ़े अयोग्य पितृव्य के पास लक्षों मुद्रायें हैं और उनके धन का मैं ही उत्तराधिकारी हूँ। जिस दिन सङ्केत करूं वह ठिकाने लगा दिया जाय"।
फलीरी―"तुमने इतने ही दिन उनको व्यर्थ जीवित रहने दिया।"
मिमो―"भाई क्या कहूँ कामना करता हूँ और करके रह जाता हूँ। तुम लोगों को विश्वास न होगा परन्तु मित्रो! किसी समय मैं ऐसा भीरु हो जाता हूँ कि मुझे ईश्वर का भय भी घेर लेता है।"
काण्टेराइनो―"सच कहो तब तो तुम मेरी अनुमति ग्रहण करो और किसी देवालय में जाकर बैठो!"
मिमो―"हाँ निस्संदेह में इसी योग्य हूँ।"
फलीग―"पहिले हमको चाहिये कि अपने प्राचीन साथियों अर्थात् माटियो के सहकारियों की खोज करें। परन्तु कठिनता तो यह है कि आज तक हमलोग उनके अधिपति द्वारा संपूर्ण कार्यों को सिद्ध करते रहे इस कारण हमको ज्ञात नहीं कि वे लोग कहाँ मिलेंगे।
परोजी―ज्योंही वे लोग मिलें पहले उनसे महाराजके तीनों मंत्रियों को ठिकाने लगवाना चाहिये।
काण्टेराइनो―बात तो अच्छी है यदि बन पाये। अच्छा महाशयो मुख्य बात की विवेचना तो हो चुकी अर्थात् या तो हम लोग राज्य को उलट पुलट कर अपने ऋणों से मुक्त होंगे अथवा इस उद्योग के पीछे अपना जीवन समाप्त करेंगे, अभि- प्राय यह कि दोनों दशाओं में हम दुःखसे छूटेंगे। आवश्यकता