कान्टेराइनो―"उलिम्पिया मेरी है।"
फलीरी―"क्यों कर?"
परोजी―"उलिम्पिया?"
कान्टेराइनो―"ऐ कुशल तो है तुमलोग तो कुछ ऐसे चमत्कृत और चकित होगये कि मानों मैंने आकाश के टूट पड़ने की भविष्यत् वाणी कही है? मैं तुमसे कहता न हूँ कि उलिम्पिया का मन मेरे हस्तगत है और मैं उसके सम्पूर्ण भेदों से अभिज्ञ हूँ, मेरे और उसके जो सम्बन्ध हैं उनका प्रच्छन्न रहना आवश्यक है, परन्तु विश्वास करो कि जो मेरी आकांक्षा है वही उसकी है और यह तो तुमलोग भली भाँति जानते हो कि वह आधे वेनिस को अपनी वंशीकी ध्वनि पर जो नाच चाहे नचा सकती है"।
परोजी―"कान्टेराइनो! तुम हम सबके गुरु हो।"
कान्टेराइनो―"और तुम लोगों ने अनुमान भी न किया होगा कि कैसा बलवान सहायक और सपक्षी तुम्हारे लिये मैं खोज रहा था"।
परोजी―"भाई तुम्हारी हितैषिता सुनकर मैं मनही मन लज्जित हो रहा हूँ क्योंकि आजतक मुझसे कुछ भी न बन आया। निस्सन्देह इतना मैं बचाव के लिये किसी प्रकार कह सकता हूँ कि यदि माटियो मेरी अभिलाषानुसार रोजाविला के बध करने में कृतकार्य्य हुआ होता तो महागज के पास से एक बड़ा सम्बन्ध जिससे वेनिस के बड़े बड़े लोग उसकी शासन प्रणालीसे प्रसन्न हैं जाता रहता, जब रोजाबिला शेष न रहती तो अंड्रियास की कोई बात तक न पूछता। बेनिस के बड़े बड़े वंश नृपति महाशय की मित्रता की थोड़ी भी कामना भी न करते यदि रोजाबिलाके द्वारा उनके साथ सम्बन्ध दृढ़