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वेनिस का बांका
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बहुमूल्य परिच्छद के कारण प्रत्येक मनुष्य उसकी अभ्यर्थना करता था और कोई ऐसा वहाँ न था जो अबिलाइनो से ऋतुपरिवर्तन, वेनिस के व्यापार और उस के शत्रुओं के विचारों के विषय में कथनोपकथन न करता हो। ए महात्मा तो सर्वगुणसम्पन्न थे ही इन बातों से कब घबराते थे, प्रत्येक पुरुष का उत्तर यथोचित देते थे। इस सूत्र से अबिलाइनो का काम निकल आया और उसने अपना पूरा इतमीनान कर लिया कि रोजाबिला अब तक उप- बनही में है और अमुक प्रणाली का परिच्छद धारण किये अमुक स्थान पर सुशोभित है।

निदान वह उसी पते पर चल निकला और माटियो भी उसके पीछे हो लिया। जाते जाते वह एक वृक्षाच्छादित सघन कुञ्ज के समीप पहुँचा जो वाटिका भर में सबसे निराले में थी। इसमें रोजाविला जिसके समान वेनिस में अपर स्त्री स्वरूपवती और सुन्दरी न थी बैठी हुई दृष्टिगोचर हुई। अबिलाइनो ज्यों ही उसके भीतर प्रविष्ट हुआ उसके दोनों पाँव इस प्रकार लरखराये जैसे निर्बलता के कारण गिराही चाहता हो, उसने पुकार कर टूटती हुई वाणी से कहा कष्ट का विषय है, ऐसा कोई नहीं जो मुझ वृद्धतर को थोड़ी सी आश्रय दे। रोजाविला यह सुनते ही झपट कर तत्काल अविलाइनो के टेकाने के लिये आई एवम् मीठी मीठी बातें कह स्नेह के साथ पूछने लगी, बूढ़े बाबा तुम्हारा चित्त कैसा है? अबिलाइनो ने कुञ्ज की ओर संकेत किया रोजाविला उसे सहारा देकर वहाँ लेगई और एक स्थान पर बैठा दिया। अबिलाइनो ने क्षीणवाणी से कहा "राजतनये! परमेश्वर तुमको इस उदारता का प्रतिफल दे" और शिर उठा कर रोजाबिला की ओर देखा। ज्यों ही उसकी आँख उस