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चौथा परिच्छेद
 


जो मनुष्य को एक ही बार प्राप्त होता है। और जब एकबार उसके अधिकार से निकल गया तो फिर प्रलय पर्यन्त हस्तगत नहीं हो सकता। अतएव तुम्हीं बतलाओ कि हमलोग उनसे निकृष्टतर हैं अथवा नहीं।

माटियो-ऐसा ज्ञात होता है कि आप हम लोगों को सदुपदेश देने के लिये यहां आये हैं।

अबिलाइनो-अजी मेरा तो एक ही प्रश्न है अर्थात् तुम्हारी दृष्टि में धर्मराज के सामने कौन निर्दोष निश्चित हो सकता है तस्कर अथवा प्राणहारक।

इस पर माटियोने एक बार अति उच्चस्वर से अट्टहास किया।

अविलाइनो-इससे यह मत समझना कि मुझ में साहस अथवा पौरुष नहीं, कहो तो वेनिस के सम्पूर्ण राजकर्मचारियों और अधिकारियों को ठिकाने लगा दूं, परन्तु-"।

माटियो-मूर्ख! सुन! डाकुओं को चाहिये कि भलाई और बुराई की कथाओं को जिनको वाल्या- वस्था में धात्री के मुख से सुना था, जी से भुला दे। भला,-भलाई क्या वस्तु है? और बुराई किसे कहते हैं? यहीं न कि रीति, प्रणाली, परिपाटी,नियम और शिक्षाने इनको ऐसा समझ रखा है, नहीं तो जिस वस्तु को मनुष्य किसी समय उत्तम समझता है जहाँ दूसरी धुन समाई उसी को निकृष्ट और तुच्छ अनुमान करने लगता है। यदि वर्तमान नृपति की ओर से वेनिस की राजकीय घटनाओं पर प्रत्येक व्यक्ति को स्वतन्त्रता के साथ सम्मति देने का निषेध न होता तो इतनी हानि न होती। यदि अब शासनप्रणाली परिवर्तित होकर यह आज्ञा हो जाय, कि जो मनुष्य चाहे अपनी सम्मति प्रकट रीति से दे, तो जिस बात को आज लोग अपराध विचारते हैं, कल्ह उसको एक सत्कर्म समझने लगें। बस