देवालय में जाकर छिपो और सलीब को हृदय से लगानो तो भी हम लोग दिन दहाड़े तुम को यमलोक की यात्रा करावेंगे। देखो सोच लो और भली भांति स्मरण रक्खो कि हम लोग डाकू हैं।
अविलाइनो-इस के जताने की कोई आवश्यकता नहीं मैं स्वयं जानता हूं, परन्तु अब मुझे खा लेने दो तो फिर जब तक कहोगे तुम्हारे साथ वार्तालाप करूंगा इस समय तो भूख के मारे मुख से सीधी बात भी नहीं निकलती, पाठ पहर से एक अन्न भी मुख के भीतर नहीं गया।
यह सुन कर सिन्थियाने एक बृहत् पात्र में उत्तम उत्तम खाने लाकर चुन दिये और रजत निर्मित कतिपय पानपात्रों में उत्तम मदिरा भर दी और मुंह ही मुंह में कहने लगी "परमेश्वर ऐसे मुये का मुँह न दिखाये, मनुष्य काहे को अच्छा खासा राक्षस है। इस में सन्देह नहीं कि जब यह अपनी माता के गर्भ में था तो इस पर प्रेत की छाया पड़ गयी, जिस से यह प्रेत का सँवारा ऐसा कलमुहा उत्पन्न हुआ। नौज! मुह काहे को, यह निगोड़ा चेहरा लगाये है, पर ऐसा भयंकर चेहरा भी तो आजतक मैंने नहीं देखा। अबिलाइनों ने उस की बात का कुछ ध्यान न किया और भोजन करने में ऐसी तन्मयता प्रकट की कि मानों छः मास तक का ठिकाना कर लिया। डाकू जी ही जी में प्रसन्न हो रहे थे कि अच्छा चेला मुँडा।
पाठकों को अविलाइनों के स्वरूप से अभिज्ञता लाभ की आकांक्षा होगी, मैं उस का वर्णन किये देता हूं। कोई पञ्चीस तीस वर्ष का युवा, हाथ पैर ठीक, शरीर शक्तिमान, सर्व प्रकार से स्फूर्ति सम्पन्न और तेजस्वी, पर मुख ऐसा कि यदि प्रेत भी देखे तो डर जाय । काले काले लम्बे चमकते हुए बाल