परग आगे बढ़ कर उसने सीटी बजाई। डाकू खड़े हो गये और शनैः शनैः कुछ परामर्श करने लगे। अविलाइनों ने फिर सीटी दी। इस पर एक डाकू बोला "यह वही व्यक्ति है।" और फिर वे सब उसकी ओर धीरे धीरे बढ़े। अबिलाइनों कोश से करवाल निकाल कर जहांका तहां खड़ा रहा। वे तीनों डाकू भी जो अपना मुख एक वस्त्र से आच्छादन किये हुये थे कई परग पर खड़े हो गये। एक ने उनमें से पूछा "कहो बचा क्या मन में है?" ऐसे सँभल के क्यों खड़े हुए हो?"॥
अबिलाइनों-जिम में तुम लोग थोड़ा दूर ही रहो क्यों कि मैं तुमको जानता हूँ। तुम लोग वह भले मानस हो जो दूसरों का जीवन नष्ट करके अपना जीवन व्यतीत करते हैं।
पहला डाकू। तुमने हमीं लोगों को न सीटी दी थी॥
अविलाइनों-हां?॥
डाकू-तो कहो फिर क्या कहते हो?
अबिलाइनों-सुनो भाई मैं तुधा से पीड़ित हूँ। तुमलोग जो द्रव्य हरण कर लाये हो उसमें से कुछ दान की रीति से मुझे दो॥
डाकू-दाल? भाई वाह, दान की बात अच्छी कही, हा हा हा हा! मनुष्य क्या निरा घनचक्कर है। क्यों न हो। दान तो पचा इतना देंगे कि उठा न सकोगे॥
अबिलाइनों-नहीं तो मुझे पचास मुद्रा ऋण दो, जब तक यह ऋण निवारण न हो लेगो तुम्हारी सेवा में कटि बद्ध रहूँगा, और जो कहोगे उसको तन मन से करूंगा॥
डाकू-भला तुम हो कौन यह तो बताओ?
अबिलाइनों-एक अभागा भूखा और पेटू। इस नगर में मुझ से बढ़कर कोई दरिद्र न होगा। परन्तु यद्यपि इस समय