पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/२४

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पहला परिच्छेद
 


फरफंदों को भली भांति जानता हूं। हुँ, हँ, कहता है जीवन रक्षा की!अजी यह तुम लोगों की मिली मार थी। यह मैं जानता हूं कि तुम सब मेरी ताक में हो? जीवनरक्षा के बहाने से मुद्रा भी लो और उपकार भी जताओ। ऐसी चतुरता, महाराज से चलेगी; बोनारुटी तुमारी चापलूसी की बातों में नहीं आने का।"

इस समय इस शोक संतप्त, क्षुधितमनुष्य की वह दशा थी जैसी कि निराशाकी अन्तिम अवस्था में होती है, काटो तो लहू नहीं। पर एक वार फिर जी कड़ा करके बोला "महाशय!परमेश्वर साक्षी है कि मैंने वात नहीं बनाई मेरी दशापर दया कीजिये नहीं तो आज निशा में मेरा जीवन समाप्त हो जावेगा।" अपरिचित-"अबे कहता हूँ कि नहीं-अभी चला जा नहीं तो परमेश्वर की शपथ, यह कह कर उस कठोर चित्त ने अपनी वगल से एक पिस्तौल निकाली और अपने रक्षक की ओर झुकाई। पथिक-"राम राम!! क्या वेनिस में सेवकाई का प्रतिकार यों ही किया करते हैं?" अपरि चित-वह देख नगर रक्षक सिपाही समीप है पुकारने ही की देर है?" पथिक-परमेश्वर का कोप, क्या तुमने मुझे डाकू समझा है?" अपरिचित-बस! कोलाहल न कर! भला चाहता है तो चुपचाप अपना रास्ता पकड़।" पथिक-"सुनिये महाशय! ज्ञात हुआ कि आपका नाम बोनारुटी है मैं अपने हृदयपत्र पर यह नाम लिख लेता हूँ। मैं यह समझूगा कि वेनिस नगर में जो दूसरा दुष्टात्मा मुझे मिला वह आप ही हैं।" फिर कुछ सोच कर बड़ी भयानक वाणी से बोला "स्मरण रख ऐ बोनारुटी! जब तू अबिलाइनो का नाम सुने तो यह समझना कि तेरी दुर्दशा के दिन आ गये।" यह कहकर अबिलाइनो उस निर्दयी को वहीं छोड़ कर चला गया।