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काव्य-ग्रन्थरत्न-माला-दसवाँ रत्न

तुलसी-सूक्ति-सुधा

(सम्पा॰ वियोगीहरिजी)

इसमें जगन्मान्य गोस्वामी तुलसीदासजी प्रणीत समस्त ग्रन्थोंकी चुनी हुई अनूठी उक्तियोंका संग्रह किया गया है। जो लोग समयाभाव या अन्य कारणों से गोस्वामीजी के सभी ग्रंथों का अवलोकन नहीं कर सकते, उन लोगों को इस एक ही पुस्तक के पढ़ने से गोस्वामीजो के समस्त ग्रन्थों के पढ़ने का आनन्द आ जायगा। इस पुस्तक में ग्यारह अध्याय हैं―१ चरित-बिंदु, २ ध्यान-बिन्दु, ३ विनय-बिन्दु, ४ तीर्थ-बिन्दु, ५ अध्यात्म-बिन्दु, ६ साधन-बिन्दु, ७ पुरुष-परीक्षा-बिन्दु, ७ उद्वोध-बिन्दु, ९ व्यवहार-बिन्दु, १० निज-निवेदन-बिन्दु, ११ विविध-सूक्ति-विन्दु। इसमें आपको राजनीति, समाजनीति भक्ति, ज्ञान, वैराग्य आदि सभी विषयोंपर अच्छी से अच्छी उक्तियाँ बिना प्रयास एक ही जगह मिल जायगी। साहित्यिक छटा के लिए तो कुछ कहना ही नहीं है। इसके तो तुलसीदास- जी आचार्य ही ठहरे। साहित्यके अध्येताओं तथा जन साधा- रण दोनों को ही इस ग्रन्थ से बड़ी सहायता मिलेगी। यह ग्रन्थ रोज काम में आनेवाले उपदेशों का अपूर्व भंडार है। इसके पाठ से सभी लाभ उठा सकते है, अनुकरण करने से आदर्श बन सकते हैं, सतयुग फिर आ सकता है। इसमें प्रारम्भ में आलोचनात्मक विशद् भूमिका भी संपादकजी ने पाठकों के सुभीतेके लिए जोड़ दी है। पाद-टिप्पणीमें कठिन शब्दों तथा स्थलों की पूर्णरूप से व्याख्या भी कर दी गयी है। पृष्ठ संख्या ५०० के ऊपर है। मूल्य केवल २)।