गुलदस्तए बिहारी
( लेखक―देवीप्रसाद 'प्रीतम' )
बिहारी―सतसई के परिचय देने की कोई आवश्यकता नहीं, सभी साहित्य-प्रेमी उसके नामसे परिचित हैं। यह गुलदस्तए बिहारी उसी बिहारी-सतसई के दोहों पर रचे हुए उर्दू शैरों का संग्रह है, अथवा यों कहिए कि बिहारी-सतसई- की उर्दू-पद्यमय टीका है। ये और सुनने में जैसे मधुर और चित्ताकर्षक हैं, वैसे ही भाव-भङ्गीके ख्यालसे भी अनुपम हैं। इनमें दोहों के अनुवाद में, मूलके एक भी भाव छूटने नहीं पाये हैं, बल्कि कहीं-कहीं उनसे भी अधिक भाव शैरों में आ गये हैं। ये शैर इतने सरल हैं कि मामूली से मामूली हिन्दी जानने वाला उन्हें अच्छी तरह समझ सकता है। इन शैरों की पं॰ महावीरप्रसाद द्विवेदी, पं॰ पद्मसिंह शर्म्मा, मिश्रबन्धु, लाला भगवानदीन, वियोगीहरि आदि उद्भट् विद्वानों ने मुक्त- कँठ से प्रशंसा की है। अतः विशेष कहना व्यर्थ है।
छपाई में यह क्रम रखा गया है कि ऊपर बिहारी का मूल दोहा देकर, नीचे प्रीतमजी-रचित उसी दोहे का शैर हिन्दी लिपि- में दिया गया है। स्वयं एक बार देखने से ही इसकी विशेषता- का परिचय आपको मिल सकता है। बिहारी-प्रेमियों को इसे एक बार अवश्य देखना चाहिए। पृष्ठ-संख्या १७५ के लगभग। मूल्य ॥)। सचित्र राजसंस्करण का १॥) उर्दू सहित का १।) राज सं०२) पुस्तकों में कठिन उर्दू शब्दों के अर्थ भी दे दिये गये हैं जिससे हिन्दी जानने वालों को विशेष सुविधा होगी।