ढङ्ग है, वही अबिलाइनो जो एक घण्टा प्रथम शिर काटे जाने और भाँति भाँति के क्लेश के साथ मारे जाने के योग्य था, अब सर्वजनों का मान्य और पूज्य बन गया,प्रत्येक को उस पर अभिमान था और प्रत्येक व्यक्ति उसको द्वितीय परमेश्वर समझता था। नृपति महाशय ने कुर्सी पर से उठ कर उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाया और अपनी जिह्वा से कथन किया 'अबिलाइनो तुमने हमलोगों का बड़ा भारी उपकार किया।' अबिलाइनो ने नृपति महाशय के कर-कमल का सत्कार पूर्वक चुम्बन किया और मन्द मुसकान से उत्तर दिया 'पृथ्वीनाथ मेरा नाम अबिलाइनो नहीं है और न फ्लोडोआर्डो है, मेरा नाम रुसाल्वो है और मैं नेपल्स का निवासी हूँ। मैंने अपना नाम केवल मोनाल्डस्चीके राजकुमार की शत्रुता के कारण बदल दिया था। परन्तु वह तो मर गया अब मुझको अपना नाम गुप्त रखना आव- श्यक नहीं॥
अंड्रियास―(अकुलाकर) मोनाल्डस्ची?।'
रुसाल्वो―'कुछ आपत्ति न कीजिये, यह सत्य है कि मोना- ल्डस्ची मेरे हाथ से मारा गया, परन्तु मैंने उसको छल से नहीं मारा वरन मेरा उसका देर तक सामना हुआ और कुछ घाव मुझको भी लगे। मरते समय उसको परमेश्वरका कुछ भय आया, उसने अपने हाथ से मुझ को निष्कलङ्क उन कलंकों के विषय में लिख दिया, जो उसने मुझ पर आरोपण किये थे, और यह भी बता दिया कि मैं किस प्रकार अपना पैतृक धन जो हृत हो गया है पुनः प्राप्त कर सकता हूँ। उसके अनुसार मैंने कार्य्य किया, और अब सम्पूर्ण नेपल्स को ज्ञात हो गया कि मोनाल्डस्चीने मेरे सत्यानाश होने और चौपट करने के लिये क्या क्या युक्तियाँ की थीं जिसके कारण मुझको वहाँ से वेश बदल कर भागना पड़ा। इसी बेश में मैं बहुत दिनों तक इत-