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त्रयविंशति परिच्छेद
 

दी, और एक अथवा दो बार अपने मुख को बस्त्र द्वारा पोंछ दिया, फिर क्या था तत्काल स्वरूप बदल गया, और सब लोगों ने देखा कि वही स्वरूपमान युवक फ्लोडोआर्डो उनके सामने बाँकों का सा ढँग बनाये खड़ा है।

अबिलाइनो―'स्मरण रखो रोजाबिला मैं तुम लोगों के सामने अष्टादश बार अपना स्वरूप इस चातुर्य्यक साथ बदल सकता हूँ कि चाहे तुम लोग कितना ही विचार करो फिर भी धोखे में ही रहोगी परन्तु एक बात भला भाँति समझलो कि अबिलाइनो और फ्लोडोआर्डो दोनों एकही व्यक्ति हैं'॥

नृपति महाशय उसकी बातों को श्रवण करते और उसकी ओर देखते थे परन्तु अब तक उनका चित्त ठिकाने नहीं था। अविलाइनों ने रोजाबिला के समीप जाकर अत्यन्त प्रार्थना पूर्वक कहा 'क्यों रोजाबिला तुम अपनी प्रतिज्ञा न पुरी करोगी? अब तुमको मेरी तनिक भी प्रीति नहीं?' रोजाबिला ने उसकी बातों का कुछ उत्तर न दिया और प्रस्तर प्रतिमासमान खड़ी उसकी ओर देखा की। अबिलाइनो ने उसके नवकिशलय सदृश करों का चुम्बन करके फिर कहा 'रोजाबिला अब भी तुम मेरी हो?'॥

रोजाबिला―'हा हन्त! फ्लोडोआर्डो भला होता यदि मैंने तुझे न अवलोकन किया होता और तेरे स्नेह पाशबद्ध नहुई होती'॥ अविलाइनो―'क्यों रोजाबिला तुम अब भी फ्लोडोआर्डो की पत्नी होगी? अब भी बाँके की स्त्री होना स्वीकार करोगी?'॥

इस समय रोजाबिला के हृदय की अवस्था का उल्लेख, न, करना ही उत्तम है' कभी स्नेह का उद्रेक होता था और कभी घृणा का, और दोनों में परस्पर झगड़ा था॥

अविलाइनो―सुनो प्रियतमे! मैंने तुम्हारे ही निमित्त देखो इतने संकटों को सहन किया, और अपने को प्रगट किया,

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